भोगवादी समाज का दर्द

भोगवादी समाज का दर्द

भोगवादी समाज का दर्द

विज्ञान ने हमारे सोंच के मूल अवधारणा को बदल दिया है जिसके कारण हमारी सोच भौतिकतावादी होकर रह गई है। इसी भौतिकतावादी सोंच के कारण हमारे अंदर भगवान के द्वारा डंड देने की सोच मे परिवर्तन आ गया है जिसके कारण आज समाज का परिदृष्य बदल गया है। अपराध करने वाले को व्यवस्था का डर होता है जबकि पहले भगवान का भी डर होता था। आज भी कुछ ऐसे लोग है जो भगवान की प्रभुसत्ता को स्वीकारते है और उसके अनुरुप आचरण भी करते है। खुश रहने के लिए अपनाये जाने वाला तरकीव भी यहीं से आता है। कुछ लोग शौकिया सोंच के होतें है जो मस्ती के लिए व्यवहारिक पहलू का ख्याल नही रखते है। जिससे उनका उलझाव समय के परेशानी का कारण बन जाता है।

इस तरह के सोच वाले स्वयं को खुश रहने के लिए जीते है इसकारण वे लोग लम्बी आवधी का सोच नही रखते है। अपनी ततकालिक व्यवस्था के साथ जुड़कर अपनी जरुरत को पुरा करते है जिसके कारण समाजिक बिषमता का दायरा बढ़ता जा रहा है। बदलते परिवेश ने बड़े हो रहे बच्चो पर भी अपना प्रभाव डालना शुरु कर दिया है जिसके कारण माता-पिता को काफी परेशानी का सामना करना पर रहा है।

गुरु मे जो अपने कार्य के प्रती निष्ठा होती थी आजकल उसमे भी कमी आने लगी है क्योकि आज शिक्षा मे धन का लेनदेन काफी जोरशोर से चल रहा है। इसी बजह से बच्चों मे शिक्षा का स्तर गिर रहा है। सुख के उपलब्ध साधन के बहुलता ने लोगो के भटकाव का कारण बन रहा है जिसका कारण वास्तविक शिक्षा की कमी मानी जा रही है। गुरु भक्त आरुणी की कहानी का ये अंश हमे ये समझाता है कि व्यक्ति को निष्ठा के साथ कार्य करते हुए आगे बढना चाहिए जिससे गुरु की मार्यादा भी बढ़ जाती है।

बच्चो के जन्म के साथ जो माता पिता अपने बच्चो के भविश्य की नींव रखते है वे भी बिगरने लगात है।

By sneha

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