संपादकिय लेख

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इस बेससाईट पर पस्तुत लेख हमारे व्यवहारीक जिवन मे घटित होनी वाली घटना की प्राकृतिक व्याख्या करता है। हम और हमारे जिवन का यानी शरीरिक क्रिया और बाहरी वातावरण का संतुलन निरंतर चलता रहता है। इसमें होने वाले परिवर्तन से हमारा मन प्रभावित होता है। हमारा प्रभावित मन यदि हमारे सोच के अनुरुप होता है, तो हम खुश होते है, अन्यथा हमें कई तरह के परेशानी का सामना करना परता है। यह जरुरी है कि हम इसका पुर्वानुमान लगा सके तथा होनेवाले परिवर्तन से सतर्क रहे और समय का सही सदुपयोग करे।

परिवर्तन को पुर्णतः नियंत्रण करना संभव नही है, लेकिन हम उसका समायोजन वर्तमान समय के साथ तो कर ही सकते है। इसके लिए हमे अभ्यास की जरुरत होती है। अभ्यास से कार्य के साथ-साथ कार्य बोध भी होता है, जिससे की कार्य की कुशलता प्रमाणिक होती है। इसके लिए हमें कार्य से जुड़े सारी जानकारी रखनी होगी, कार्य को कई नजरीये से देखना होगा। उसका समायोजन ढ़ुढ़ना होगा। यदि हमे सम्पादित होने वाले कार्य से आनन्द की अनुभुती होगी, तभी कार्य से हमारा लगाव बढ़ेगा, अन्यथा यह सब उवाउ लगेगा और हम बिल्कुल अलग तरह से व्यवहार करेंगे। फिर वही होगा जो समान्यतः होता है। समय के साथ होने वाली समस्या का समना नहीं कर पाना और दोष भगवान को देना। झल्लाना, चिखना, चिल्लाना तथा उदास होने के साथ-साथ, जिवन से मुख मोड़ लेना। इसके बाबजुद भी हम सहज बने रहते है। हम जिवन जिते चले जाते है, लेकिन यदि आपको खुद का यह भान भी हो जाये, तो भी कोई समाधान नही निकल सकता है।

सामान्य जिवन मे घटित होने वाली घटना का व्याख्या, हम जरुरत को ध्यान मे रखकर करते है। जिससे की हमें अधिक लाभ हो सके। यदि आप नियमित रुप से सुचना सामाग्री से जुड़े रहकर इस बिचार को अपने व्याहार मे लाते है, तो आपका चेतना जागृत हो जाता है तथा आपको आने वाले समस्या का सही सामाधान चुनने मे आसानी होती है। समस्या का समाधान निकालने के बाद आपको एक सुखद एहसास होगा । आपका यही एहसास आपके जिवन को बदल देगा। आपकी सोच कर्तव्य निष्ठ होकर एक सफल व्यक्ति के रुप मे, आपको समाज के सामने लाकर रख देगा। समाज के प्रती आपका व्यावहार आपका आंतरिक गुण बन जायेगा, जिससे की आपकी यश गाथा बनने लगेगी।

जानकारी कही से मिले लेनी चाहीए लेकिन यह सही तथा भेदभाव रहित होना चाहिए, जिससे की आप, अपने तरह से इसका समायोजन कर सके। कार्य को कार्य बोध के साथ करने से जो आनन्द प्राप्त होता है, वह अद्वीतीय आनन्द हमारे मन को प्रफुल्लित कर देता है। जिससे की हम नयी सम्भावनाओं पर आसानी से बिचार कर सकते है। क्योकि हमारे पास इसके लिए प्रयाप्त कार्य उर्जा होता है। हम कार्य समायोजन जानते है। हमारा बिचार समय के साथ सुदृढ़ है। हम उत्साहित है। हम सहज और सतर्क है, जिससे की हमारा कार्यवल हमेशा कार्यान्वित होता रहता है। गुरु का हमारे जिवन मे बड़ा ही महत्व है, वो हमे वही बतलाते है, जिसका हमे जरुरत होती है। उनको आपके गमन मार्ग का पुर्व ज्ञान होता है, क्योकि उनकी चेतना जागृत है। आपका मार्गदर्शन तब होगा जब आप गुरु की शरण मे मार्गदर्शन के लिए जायेंगे। यही अनुभुती आपके सफलता की कुंजी देता है। आपको आपके कार्य का बोध कराता है। कई लोग इस गुण के धनी होते है। जो स्वतः के, योग साधना से इसे प्राप्त कर लेते है। लेकिन जिनके पास यह नही होता है। उनको यह प्राप्त करना परता है। आप स्वध्याय से जु़ड़कर इस कार्य को सफलता पुर्वक कर सकते है। स्वध्याय के लिए सामाग्री का नविनतम, सहज और जरुरी माध्यम से मिलना आवश्यक होता है।

आप और हम कार्य साधना से जरुकर अपना और आज के नविन समाज का कल्याण करे जो पुर्णतः स्वार्थी हो चुका है, एक सार्थक कदम होगा। यही कदम समाज निर्माण मे एक महत्वपुर्ण भुमिका अदा करेगा। हमारा आपका साथ लेख के माध्यम से रहता है, तथा आपकी प्रतिक्रिया भी हमे आपके द्वारा किये गये कोमेंट से मिलता रहता है। हमारा प्रयास आपके लिए कितना सार्थक है, यह आपके कोमेंट से मिलता है जिससे हमारा उत्साह वर्धन होता है और यही हमारी पुँजी भी है। जिससे हम अपने को धनी समझते है। जय हिन्द

कविता पाठ करने के लिए आपका सोच का होना जरुरी है। आपको कम समय मे बहुत अधिक जानकारी देता है। आपके सोचने समझने का दायरा बढ़ा देता है। आपके कल्पना शक्ति को एक पंख लग जाता है जिससे आप समय के साथ होने वाले परिवर्तन की पुरी दृश्य को आसानी से समझ सकते है। एक पुरा पाठ को करने के लिए आपको लगातार इससे जुड़े रहना चाहीये

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

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