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किंकर्रतव्यविमुढ़ता

लक्ष्य को साधित करने के बाद उसको पाने के लिए किये जा रहे प्रयास मे जब वाधा उत्पन्न होती है तो व्यक्ति सामाधान ढ़ुढ़ता है। यही पर किंकर्तव्यविमुढ़ता की स्थिती आती है। व्यक्ति के अंदर समाधान के लिए गुण की कमी, संसाधन की कमी या व्यवस्था की कमी जैसी अनेको समस्या आ खड़ी होती है। वह ऐसे चौराहे पर खड़ा होता है जहां से अनेको रास्ते निकलते है सभी रास्ते मे कुछ कमी और कुछ सही नजर आता है।

  यहां पर व्यक्ति को अपने सोच, कार्य करने की क्षमता तथा उपलब्ध व्यवस्था के अनुसार उपयुक्त जानकारी को पाने की कोशीश करनी चाहिए। यदि जरुरत परे ते अनुभवी व्यक्ति से संवाद कर लेने चाहिए फिर अपने योथोचित व्यवहार के साथ एक दिशा मे चलना प्ररम्भ कर देना चाहिए। एक बार जब चलना प्ररम्भ कर दिये तो बार बार मुड़कर देखना और अफसोस करने से कार्य करने की क्षमता पर असर होता है। इसलिए कार्य को उत्साह के साथ करते हुए आगे बढ़ने की कोशीश करनी चाहिए।

  महाभारत काल मे भिष्मपितामह जो प्रतिज्ञा लिये उसको अंत तक निभाये। उनके रास्ते मे कई कठीन समय आया जब कोई विकल्प नही था फिर भी उन्होने अपने मार्ग पर अटल रहे। कर्ण भी अपने अभाव के साथ जो जोद्दोजहद करते हुए आगे बढ रहे थे दुर्योधन के कृपा पार्त पाकर आगे बढ़ने की ठान लिए। आगे बढ़ते हुए उनके मार्ग मे भी कई तरह के सुंदर ऑफर मिले लेकिन कर्ण अपने रास्ते से नही डिगे। उन्होने अंत तक अपनी बात को समाज के सामने रखी और आज का समाज इन वातो को समझ भी रहा है। उन्होने अपने जीवन को मुल्यावन समय के साथ जीया। रामायण काल मे भी भगवान राम ने अपने पिता की बचन को पालने करने के लिए वन गए जवकि उनके शोक मे उनके पिताजी सर्वलोग सिधार गये। भाई खड़ाऊ गद्दी पर रखकर शासन किये लेकिन भगवान अपने वचन से विचलित नही हुए। इन सफल लोगो ने जो अपने जीवन को समाज के सामने रखा इससे हमारा समाज आज भी उद्वेलित होता है उनसे जीवन मे आगे बढ़ने की प्रोरणा ले रहा है।

  दृढ़ इक्क्षा शक्ति के साथ कुशल कार्य क्षमता को अपनाते हुए जो कार्य को किया जाता है तो उसको सफलता जरुर मिलती है। कमजोर मन हमेशा से सुख की खोज करता रहता है। वो कार्य करने मे अनाकानी को बड़ा महत्व देता है जिससे उसके मार्ग मे कठीनाई ही कठीनाई आती है। जीवन मुल्यो को उच्च बनाये रखने के लिए सतत प्रयासरत रहते हुए जो कार्य को किया जाता है उससे ही समाज का सम्मान मिल पाता है जो व्यक्तिगत खुशी को गुणित कर देता है।

  • कार्य को एक बार निश्चय कर लेने के बाद अपनी पुरी कार्य क्षमता के साथ आगे बढ़ते रहे बार-बार फिछे मुड़कर ना देखे।
  • सहयोग, परामर्श और गुणकारी भाग को जागृत करने के लिए सतत प्रयत्नशिल रहे जो संतुष्टी का भाव जागृत करेगा।
  • जानकारी के साथ दृढ़ता होने चाहिए ङठधर्मी की तरह जानते हुए भी अपने बात पर अडीग रहना भी अच्छा नही माना जाता है। ऐसा आपमे दुरदर्शिता की कमी के कारण होता है।
  • व्यक्ति की कार्य क्षमता सिमित है उसके आगे बड़ने के लिए उच्च ज्ञान शक्ति की जरुरत होती है। जिसको हासिल करना परता है।
  • परिस्थिती से समझौता किया जा सकता है अपने लक्ष्य से नही किया जा सकता क्योकि उदेश्य ही व्यक्ति की विकाश की अवधारणा को गति देता है।
  • सिखने की प्रबृति को हमेशा जगाये रखे और अपनी अनुशासन बनाये रखे। आपका सदा कल्याण ही होगा।

मार्ग मे भटकाव के कई साधन उपलब्ध होते है जिससे की लक्ष्य की प्राप्ति मे बाधा आती है। उर्जावान रहने तथा अपनी लक्ष्य के प्रति निष्ठावान बने रहने से बाधा हल हो जाती है और समय के साथ सफलता मिल जाती है। ऐसे लोगो के जीवन मे किकर्तव्यविमुढ़ता की स्थिति नही आती है। क्योकि जहां अवरोध होता है वहां उसका अंतःकरण जागृत हो जाता है तथा उच्च कार्य क्षमता और वुद्धीमता का उपयोग करते हुए वे आगे निकल जाते है। जीवन यात्रा से जो अनुभव प्रप्त होता है वह उसमे उच्चता प्रदान करता है। यही हमारा आदर्श भी स्थापित करता है जो हमारे शातचित रहने के लिए अच्छा युक्ती सावित होता है।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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  • कार्य मे उत्साह आने से कार्य कार्य आसान लगने लगता है।
  • भाव का प्रभाव बहुत गहरा होता है इसे बनाये रखे।
  • उलझन विकाश मे बहुत बडी़ वाधा है।

By sneha

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