Bhakti

शक्ति कलश

शक्ति कलश

शक्ति कलश एकात्म बिचार से लोगों को जोड़ने के लिए हिन्दु जनमानस को यज्ञ के माध्यम से उत्साहित किया जाने वाले ये कार्यक्रम गायात्री परिवार की एक महत्वकांक्षी योजना है। धार्मिक उत्सव से जन आन्नदोलन के द्वारा वर्गिकृत समाज को एक पटल पर लाकर विकास की प्रक्रिया को उच्चतम स्तर पर ले जाने का ये प्रयास लगातार चल रहा है।     शक्ति कलश की यात्रा से यज्ञ की शुरुआत किया जाता है लोगों के भावनाओ को नये सिरे से सुत्रवद्ध करते हुए जीवन मे आगे बढ़ने के गुण को नवीकृत करके बिचारोन्नमुख से उत्साहवर्धन का योग गुणकारी है। संबंधित लेख…
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भाव के मंदिर

भाव के मंदिर

भाव के मंदिर मंदिर के प्रकृति तथा उसका आभामय विन्यास को लेकर हमारे मन मस्तिष्क में जो बिचार उतप्लावित होता है उससे एक भाव का निर्माण होता है जो हमे कुछ सिखने के लिए प्रेरित करता है। यही प्रेरणा हमें मंदिर ले जाती है और उस उतप्लावित भाव को स्थाई रुप देते हुए जीवन उत्कर्ष को आगे बढ़ाती है।    भाव सदा एक जैसा नही रहता है इसकी प्रकृति समय के साथ बाहरी व्यवस्था से बदलात रहता है लेकिन हमे जो बिचार आनंद देती है उसका हमारे जीवन मे बड़ा ही महत्व होता है। इसलिए भाव के प्रकार से हमारे…
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तप और ज्ञान

तप और ज्ञान

तप और ज्ञान तप और ज्ञान संयम से शारीरिक नियंत्रण को समझते हुए कठिन से कठिन भाव को समझने के लिए तप करना होता है। जिससे एक स्थाई विचार के साथ संस्कार का विकास हो जाता है। इससे ज्ञान को अर्जन करने में आसानी होती है। ज्ञानी होने से ही हमारे दुख का अंत होता है। क्योंकि कठिनाई में ज्ञान हमे अगला रास्ता दिखा देता है। तप करने की प्रेरणा जगाना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि भौतिक जीवन के सुखद एहसास के पार जाना आसान नहीं है। जाकर भी संकल्प को पूरा करना और कठिन है। इसके बाद…
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जीवन के पार चलो

जीवन के पार चलो

जीवन के पार चलो जीवन के पार देखने वाला दृष्टि पाकर व्यक्ति अहलादित हो सकता है। आन्दित हुए व्यक्ति सतमार्ग पर चलना शुरु भी कर सकता है, लेकिन उसके लक्ष्य तक पहुँचने मे आने वाली वाधा को पार जाने की शक्ति समर्थ का होना भी जरुरी है। इसका पुर्व पुर्ण ज्ञान होना संभव नही है। इसके लिए तो व्यक्ति का संकल्प शक्ति ही याचक बन सकता है। यही वो शक्ति है, जो व्यक्ति को पार जाने के लिए यथेष्ट बल को नियोजित कर बाधा से पार ले जायेगा। हमारे शरीर के अंदर बिभिन्न धटको मे बल समाहित है, जिसका यथोसमय…
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मुर्ती पुजा

मुर्ती पुजा                                                      मुर्ती पुजा का इतिहास बहुत पुराना है। मानव ने जबसे जीवन को समझना शुरु किया तभी से उन्होने चित्र रुप का निरुपण किया। उसके भय को एक सहारे की जरुरत थी। यही सहारा मुर्ति के पुजा का स्थान सुनिश्चित किया। मानव के बिकाश की यात्रा का इतिहास आज के मानव को बुद्दिमान सावित करता है। लेकिन मुल बिषय डर आज भी है। डर का नियोजन समय के साथ तथा व्यक्ति दर व्यक्ति अलग - अलग होता है, तथा किया जाने वाला उपाय भी अलग होता है। लेकिन धार्मिक मान्यता हमारे अंदर जो भाव पैदा करता है, उससे…
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भक्त हनुमान

भक्त हनुमान

भक्त हनुमान भक्ति की परमानन्द को पाने वाले भक्त हनुमान को भक्त शिरोमणी भी की संज्ञा दी जाती है। भगवान की भक्ति की महीमा को गाने मे समस्त जीवो मे हनुमान का नाम सबसे ऊपर आता है। हनुमान जी ने अपने लिए भक्ति के सिवाय कुछ नही चाहा। यही गुणकारी भाव उनको समस्त जीवो से ऊपर ले गया। दिन दुखियो को मदद करना भारतीय बिचारधारा की धरोहर रही है। इसी धरोहर के भाव को जिवंत रुप हनुमान जी ने दिये जिसके कारण हम उन्हे भगवान की संज्ञा भी देते है। भक्त के रुप मे उनकी गाथा हम गाते है तो…
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महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि लेख भगवान भोलेनाथ के बैराग्य को माता पार्वती ने अपने तपोवल की शक्ति से तोड़कर उनको अँगीकार कर लिया। भगवान ने जीव जगत वासी के लिए शायद यह लीला रची हो। लेकिन जनमानस के लिए आज भी उनका यह कार्य याद किया जा रहा है। कहते है कि पुजा तो गुण की ही होती है। माता पार्वती के आलौकिक दृष्टि मे शिव शक्ति के जो गुण दिखे हो। हम जगत वासी के विए तो उनके हर गुण महान ही दिखते है। काल तथा परिस्थिती के अनुरुप महादेव के शक्ति धारण तथा समस्या निवारण कि चर्चा समस्त ब्रम्हाण्ड मे चलती…
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अतिथि आये

अतिथि आये

अतिथि आये अतिथि का भी अपना एक गणित होता है जिससे उनका संयोग और बियोग बनता है। एक बार ऋषि दुर्वाशा अर्जुन के वन आश्रम मे पधारे। उनके एक भाई से भोजन का प्रबन्धन करने को कहकर अतिथि अपने साथी समेत वन मे ही स्नान को चले गये। इस बात की सुचना जब द्रोप्ती को हुई तो उनकी चिंतन बढ़ने लगी क्योकि घर मे सभी खाना खा चुके थे। फिर भी वह अपने भोजन के वर्तन को देखने गई। उसमे सिर्फ एक ही चावल था। इसी बिच भगवान कृष्ण अतिथि बनकर अपने भक्त के घर पहुँच गये। भक्त के भाव को…
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गायत्री बन्दना

गायत्री बन्दना

गायत्री वंदना माता गायत्री की वन्दना से हम उनके दिव्य शक्ति को अपने अंदर जागृत करते है। दिव्य शक्ति को मंत्र उर्जा के रुप मे वेदो मे स्थान दिया गया है। चुकी मानव, भाव का एक युक्ति यंत्र है। इसकी सारी उर्जा इसके नाभी मे कुंडलीत रहती है, जो सुषुप्तावस्था मे विधमान रहती है। इस कुंडलीत उर्जा को जिस भाव के रुप मे हम क्रियांवयित करेगे, वैसा ही हमारे चित का स्वरुप हो जायेगा। इसलीए मंत्र शक्ति, माता गायात्री के एक एकात्म स्वरुप का भान करते हुए, उनके वेदमंत्रोयुक्त भाव के द्वारा, हम स्वयं को उर्जावान करते है। हमारी जागृत…
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मॉ वरदान दो

मॉ वरदान दो

वरदान एक ऐसा योग है जिससे गुण को स्वयं के अंदर जागृत किया जाता है जिसके मन चाही आकांक्षा को पुरा किया जा सकता है। इसके पश्चात हमें कठीनाई का सामना करने में आसानी होती है। वरदान को पाने के लिए एक कठीन साधना को साधक को अपनाना होता है। साधना के मार्ग को चुनने के लिए प्रेरणा भी अंदर से आती है जो लगातार हमे लक्ष्य की ओर जाने के लिए प्रेरित करते रहता है। जो हमे सफल होने के लिए लागातार अपने प्रयास को समीक्षा करते रहना होता है। हमारे अंदर की कमी को पाने के लिए हमे…
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