वट सावित्री व्रत
यह व्रत नारी स्वयं को सुहागन बनाये रखने के लिए करती है। सुहागन स्त्री को मानसिक तथा समाजिक दोनो स्तर पर समायोजन पति के द्वारा ही संभव होता है। नारी के मान-सम्मान की रक्षा का प्रभाव पुरुष पर ही होता है। अपने पति को समर्पित पत्नी का जीवन आशा और विश्वास के साथ आगे बढ़ता जाता है। शारीर सौन्दैर्य घटता है तथा विश्वास और टटस्थता बढ़ती जाती है। स्त्री की संवेदना अपने पती के प्रती इतना सुदृढ़ हो जाता है कि वह अपने पति के सिवाय किसी के प्रती सोचना भी पसंद नही करती है। कहते है कि समाज निर्माण मे नारी का अहम भूमीका है। इनकी सहन शक्ति की तुलना संभव नही है। अपनी शक्ति मे आरुढ़ नारी सतत अपने पति की प्रतिष्ठा तथा संतान की सेवा के प्रती पुर्ण रुप से निष्ठावान बनी रहती है।
काल की अपनी एक गति है जिसका समायोजन प्रकृति करती है। यह इतना जटील है कि असंख्य घटना कुछ ही छण मे घटीत होकर समय का निर्धारण कर देती है। इसका हम अनुमान लगा सकते है लेकिन पुर्ण रुप से कुछ कहना संभव नही है। इसी धारा मे चलती नारी भी अपने परम बैभव को प्राप्त करते हुए सुख शांती से गुजर-बसर के काल मे एक समाजिक आदर्श भी कायम करना चाहती है, जिससे की उसकी आत्म संतुष्टी के भाव उसके आत्मा को उर्जावान और उत्साहित कर दे। जिससे की आने वाले जन्म मे विशिष्टता को प्राप्त किया जा सके।
समय के परिवर्तण के साथ पति संयम से साधित हो और स्त्री का साथ सतत बनी रहे इसके लिए ही वत सावित्री व्रत की पूजा की जाती है। आस्था और विश्वास का ये पर्व अत्यंत लोकप्रिय है। इसके पूजा मे महिलाओं की पुरी आत्मीयता जुड़ी होती है। ऐसा देखा देखा गया है कि उत्साहित महिलाओं मे इस पर्व के प्रती उत्सुकता अधिक रहती है। इस व्रत का प्रसंग सावित्री सत्यवान की कथा से जुड़ा हुआ है। कहते है कि सत्यवान की भौतिक जीवन की आयू पुरी हो गयी थी। इसलिए यमराज को उनके पति की आत्मा को अपने लोक ले जाने की जानकारी सावित्री को हो गई थी। सावित्री की साधना और धर्म के प्रती निष्ठा ने उन्हे इस काविल बना दिया था कि वो अपने सुहाग को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध हो गई थी। इसके बाद तय समय मे एक दिन यमराज जब स्त्यवान के प्राण लेकर अपने लोक जाने लगते है, तब सावित्री अपने देवत्व गुण से उसका पिछा करने लगती है।
यमराज ऐसा देखकर उसे वापस करने की कोशीश करते हैं लिकिन वह किसी लोभ लालच मे आये बिना यमराज की पिछा करती रहती है। यमराज उसे एक वरदान देकर छुटकारा पाना चाहते है। इसके लिए सावित्री तैयार हो जाती है। एक वरदान मे वह सुहागन रहने की वर मांग लेती है। यमराज ऐसा कहते हुए जाने लगते है तो सावित्री उसे याद दिलाती है कि सुहागन बिना पती के संभव नही हो सकता तो आपका वरदान कैसे सफल होगा। यमराज सावित्री के सत्य और निष्ठा से प्रभावित होकर उसके पति को जीवन दान दे देते है।
यह कथा जीतना मानव को झकझोरती है उतना उद्वेलित भी करती है। आज भले ही हम उन आदर्शो मे नही आ पायें फिर भी नारी पति के प्रती अपने विश्वास को बनाये रखने के लिए भगवान बिष्णु तथा माता लक्ष्मी के पुजन के लिए सावित्री के तप को तो आधार बना ही सकती है। आज सुख के जो साधन है वह सामाजिक मर्यादा के साथ जो एहसास देता है वह स्त्री के लिए पति ही है।। पति के सानिध्य को पाते हुए मनः चेतना को जगाकर पति के लम्वी आयु की कामना अपने आराध्य से करते हुए सुहागन स्वयं को धनवान समझती है। उनका यह विश्वास बना रहे ऐसी कामना हम देव शक्ति से करते है।
हे मानव हमारा मन ही आनन्द के योग को सिद्ध करता है। इसलिए इसका निर्देशन जरुरी है। इसको एक युक्ति के जरीये ही समझा जा सकता है। इसको वाकपटुता के दिव्यता के साथ उलझाकर बहुत देर तक स्थिर नही रखा जा सकता है। यह भ्रमित होने की ओर अग्रसर रहता है। इसलिए स्वयं को उर्जावान करने के लिए एक युक्ति को चुन लो जो तुम्हे तुम्हारे लक्ष्य तक ले जा सके। एक बार यह साधित हो गया तो समझो तुम्हारा जीवन सफल हो गया। आज का वट सावित्री व्रत इसी युक्ति का योग है। हे देवशक्ती सब साधक को उसके मनोयोग के अनुरुप उनका फल प्राप्त हो इसकी हम कामना करते है। अपने भक्त की आप सतत रक्षा करना। जय हिन्द।
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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