महाकुम्भ

महाकुम्भ 2025

      त्रिवेणी संगम का पवित्र स्थल जहां पर गंगा यमुना और सरस्वती नदी एकिकृत होकर एक नदी बन जाती है महाकुम्भ के पावन स्थल के रुप मे जानी जाती है। गंगा के इस पावन जल का भी समापन बंगाल की खाड़ी मे होता है। कई धारा एकाकृत होकर जब एक धारा बनते हुए आगे बढ़ती है और अततः इसका समापन विशाल सागर मे होना सुनिस्चित होता है तो वो हृदय के मार्मिक भाव को एक युक्ति प्रदान करता है। यही युक्ती हमे एकात्म भाव बनाने के लिए प्ररित करती है जिससे हमे जीवन को समझने मे मदद मिलती है। ब्राह्य व्यवस्था से अंतःकरण को एक युक्ती देते हुए जो खुशी मिलती है उसका मनोयोग पर अच्छा प्रभाव परता है। विचार की समझ रखने वाले लोगों मे एक आलौकिक उत्साह का कार्यवल जागृत हो जाता है जिससे की जीवन को समझने की उत्साह मे उतरोत्तर विकाश होता चला जाता है। एक समयबद्ध योजना के संपादन से उदृत हो रहे हमारे विचारो को एक व्यवहारिक गती मिलती है, जिससे की समझ की उच्चता का विकाश होता है। भाव प्रदान विचार को संयमित करते हुए नये-नये विचार के आगमन तथा उसका समायोजन होते रहने के लिए इस तरह की व्यवहारिक ज्ञान उत्तम विकास के लिए जरुरी हो जाता है।

      महाकुम्भ स्नान को लोग जिस आस्था और उत्साह के साथ करते है उससे उसके जीवन मे उन्नती का योग बनता है। यही योग उनकी वैचारिक व्यवस्था के भाव के साथ नविकृत हो जाता है। जिससे शांतिपुर्ण व्यवहार के साथ आगे बढ़ने मे मदद मिलती है। हमे जो विचार पेरित करती है उसी के साथ हमारा व्यहार भी बनने लगता है जिससे हमारे कल्याण के मार्ग भी खुलने लगते है। विचार को व्यवहार के साथ जोड़कर जीवन को समझने की जो प्रेरणा हमारे पुर्वजो से हमे मिली है उसी का वो प्रभाव है जो हमे एक सभ्य नागरिक के रुप मे स्वयं को स्थापित करने मे सफलता मिली है। वैश्विक स्तर पर हमारी जो पहचान है उसे ये परिभाषित भी करती है।

     स्नान एक वाहरी प्रक्रिया है इसका प्रभाव तो समान्य ही दिखता है लेकिन जो विचार की स्थापना के साथ आस्था से जुड़कर जो व्यवहरिक युक्ति प्रदान करती है वह हमे उद्वेलित भी करती है और एक दुसरे को जोड़ती भी है। यही योग हमारे जीने की कला को उच्चता प्रदान भी करती है। सकारात्मक सोच के साथ समाज का कल्याणकारी विकास होना एक जरुरी व्यवहार भी है जिससे की समाज को प्रेरणा मिलती रहे और जीवन जीने की समाजीक व्यवहार के साथ सुख और शांती भी बनी रहे।

    हम महाकुम्भ आस्था के साथ होने वाली स्नान से सभी श्रधालु के प्रती आदर का भाव रखते हुए उनके सुखद भविश्य की कामना करते है तथा आशा करते है कि आऩेवाली जीवन की बाधाओं से पार जाने मे उनका आत्मवल सदा उन्नत बना रहेगा। यही योग हमारे समाजिक जीवन को एक सर्वोच्यता प्रदान करे इसकी आशा हम करते है।

लेखक एवं प्रेशकः- अमर नाथ साहु

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  • गुरुर नही करना एक व्यवस्था है पर इसकी सार्थकता को समझना विकास का एक योग भी है।
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  • उत्साह से हमें जीवन मे आगे बढंने मे मदद करती है।
  • चुनाव आगे बढ़ेने मे वहुत मदद करती है।

By sneha

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