
ताजा गुलाब
प्रकृति की सुषमा मे कई रत्न ज़ड़े परे है हमारी समझ जहां तक जाती है हम खुद को धन्य समझते है कि हमने अपनी जीवन की एक अनोखी यात्रा पुरी कर ली। जीवन के आदी और अंत का कोई आता पता नही है लेकिन जीवन के प्रवाह सतत जारी है। अध्यात्म ये कहता है कि जीवन का आना जाना लगा रहता है प्राणी को अपने उतकृष्ट कर्म करने चाहिए जिससे की उसके द्वार किया गया सतकर्म मानव समाज के लिए एक प्रेरण स्त्रोत बने।
प्राकृतिक रत्नो को जब ज्ञान प्रकाश से देखा जाता है तो उसकी वास्तविक महत्ता समझ आती है लेकिन भौतिकता की प्रचंड प्रवाह मे वहता हुआ मन इस गहराई मे मुश्किल से उतर पाता है। जो इस गराई मे उतरकर जीवन को समझते है उनको इन रत्नो से पुर्णता का एहसास होता है और वह मुक्ति का अनुभव करता है।
ताजा गुलाब को देखकर मन मे उत्साह जागता है वह साहसा ही हमे प्रेरित करता है और ततकालिक रुप से हमे सारी प्रभाव से मुक्त कर देता है। ये अपना एक सुन्दर मनोरम भाव बनाता है और हमे प्रफुल्लित कर देता है। इसका सही उदेश्य हमे भाता है। हमे अपने आचरण मे भी इसी तरह के गुण को बांधना चाहिए जिससे की दुसरे प्रभावित हो और अपने जीवन यात्रा मे सुखद की अनुभुति करे।
समस्या और बाधा नियत की विधान है हमारी तो इसको सही समाधान करते हुए आगे बढ़ना ही अपनी पहचान है इसी पहचान से हमारा मान और सम्मान है। हमारी मान सम्मान ही वो पुजी है जो हमे यत्र तत्र सर्वंत्र खुशी का सुखद एहसास कराता है। हमारा आंतरिक प्रफुल्लीत मन सुखद आरोहन करता है ओर जीवन के याथार्थ से खुद को उत्साहित करता है।
खुश रखने के लिए हमे अपनी व्यवस्था को पुरी उर्जा के साथ सही रखना होगा और समय के साथ सही से कार्य करते हुए कार्य से ही आनन्द लेना चाहिए। कार्य से तनाव बनाकर किया गया कार्य हमारी परेशानी को बढ़ा देता है और हम स्वयं मे ही कुंठीत महसुस करने लगते है।
ताजा गुलाब की भाती ही हमे स्वयं मे जीतना होगा और सतत आगे बढ़ना होगा। हमारा ध्येय और ध्यान ही हमे ज्ञान की अनुभुति करायेगा इसके अनुसरण से हमे अपने मार्ग को सुगम और सहज बनाना होगा। जिससे की हमेशा जीवन मे ताजगी बनी रहे।
लेखक एवं प्रेषकःअमर नाथ साहु
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