दहेज
दहेज का बोलबाला हमेशा से रहा है। शायद ही इसको पुर्ण रुप से समाप्त किया जा सके। लेने तथा देने की प्रबृति दोनो तरफ रहती है। इसी से व्यक्ति के गुण दोष का पता भी चलता है। एक चलन भी लोगो को प्रभावित करता है। कोई धन लेकर दुल्हन से समझौता करता है तो कोई दुल्हन लेकर धन से समझौता करता है तो कोई निःस्वार्थ भाव से अपने को धन्य करता है। इस बिशाल जनमानस के बिच रंग बिरंगे रुप देखने को मिलता है। हमारा उदेश्य ऐसे समाज की स्थापना का रहता है जो एक स्वस्थ्य परम्परा का निर्माण करे। समाज मे दहेज लोभी की अनुपात कम हो। इसका प्रयास सतत चलता है तथा चलना चाहिए। हर व्यक्ति को सुरुआत करने की प्ररणा लेनी चाहिए। इसी बिचार के साथ दहेज के बिभिन्न पहलु का हमने एक खांका खिंचा है।
प्यार का एक नया स्वरुप सामने आया है जिसमे शादी कोर्ट मैरेज के रुप मे होता है जहां दहेज का स्थान नही के बराबर है। क्योकि यह बन्धन व्यक्तिगत स्तर पर होने के साथ ही कानुन का डंड़ा भी चलता है। व्यक्तिगत लगाव समय के साथ बदलती रहती है जिसको विसंगत होने का डर बना रहता है। लेकिन इसका प्रचलन समाज मे बढ़ता जा रहा है। स्वभाव के मिलान तथा एक दुसरे को समझने का मौका मिलता है।
एक दुसरे से आगे निकलने के प्रयास। सुविधा के विस्तार के बिचार। व्यक्ति का लोभ ही उसको दहेज रुपी दानव को प्रकट करता है। जिसने इसे सराहा है उसे देर सवेर इसका प्रभाव देखने को मिल जाता है। लेने तथा देने वाले के विचारधारा मे बदलाव हो जाता है जिसके कारण आपसी रिस्ते का प्रभाव कम हो जाता है। मान सम्मान मे भी पहले का रस नही जाता है।
देने वाले की अभिलाषा एक बेहतर जिवन की रहता है। वह दबाव मे रहता है। उसका दबाव कई तरह से दिखता भी है। दुल्हन का व्यहार रहता है कि मेरे पिताजी आपको एक बेहतर व्यवस्था के लिए हमे आपको चुने थे। इसलिए वह परिावार के साथ मानसिक रुप से नही जुड़ पाती है। उसको जुड़ने मे समय लग जाता है। तबतक तो कई रिस्ते एक नई मुकाम पर पहुँच चुका होता है।
दुल्हन ही दहेज कहने वाले का नजरीया बिल्कुल स्पष्ट होता है। उनकी पुछ समाज मे सदा होती रहती है। लोग उसका उदाहरण पेश करते है। वह स्वयं समाज के सामने अपने को सही तरह से रख पाता है। सामाजिक प्यार भी उसके लिए एक अलग दृष्टिकोण रखता है। शान के साथ अपनी बात को कहने से उनका मान बढ जाता है।
हमे आज ही अपने स्तर से एक प्रयास करना होगा जो हमे एक शान्ति सुखद एहसास देगा जो हमे सदा आन्दोलित करता रहेगा। जय हिन्द
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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