पुतीन का कर्ज
पुतीन के द्वारा कमाई जा प्रतीष्ठा मे एक और अध्याय जुड़ गया है। शक्तिशाली सम्राज्य के नायक का ये नया रुप जनमानस को टिस दे रहा है। मानवता को समझने का जो प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ के रुप मे स्थापित हुआ था आज वह खुद समझने मे लगा हुआ है।
युक्रेण के युद्ध मे जो कुछ कमाई होगा उसका हकदार पुतीन ही होगें। क्योकि उनके उन्मादी बिचार पर ही मुहर लगी है। इसकी किमत इतिहास पुतीन से जरुर उसुलेगा। आज पुरे बिश्व मे एन्ग्री पुतीन के नाम से उनको सम्मान मिल रहा है। जवकी युद्द चल रहा है। इतिहास अपनी कहानी को पुतीन के ही कर्यकाल से जोड़ेगा। कहते है मानव मुल्यों का जिससे हास हुआ है उसको इसकी किमत चुकानी पड़ती है। देर या सवेर उसको इसका एहसास होता है।
पुतीन पर मानव मुल्य का कर्ज बढ़ता जा रहा है। सारी दुनीया इस प्रयास मे लगी है कि एन्गी पुतीन कहीं तानाशाह पुतीन मे न बदल जाये। क्योकी इस तरह के लोगो को दुनीया सनकी कहती है। क्योकि यह प्रसंशा सिमित दायरा तथा सिमित समय के लिए होता है।
मानव की सम्रग सेवा करने वाले की गाथा युगो – युगो तक प्यार से गायी जाती है। जबकी मानवता के हास करने वाली की गाथा दर्द के साथ सुनायी जाती है। इसी गाथा का विन्यास से उसके कर्ज को बढ़ा जाता है। इतिहास मे बहुत सारी ऐसा घटना होती रही है, और उसका मुल्यांकन भी हम पढ़ते आ रहे है। लेकिन हमने उससे जो शिक्षा हासिल किया है उस समय हमारा मन कमजोर रहा था। जब शक्ति आती है तो इतिहास के समझ की शक्ति क्षिण हो जाती है। वर्तमान हावी होता है। विगत का भुत सवार होता है। जवकि भविश्य की उत्कर्ष की चिता भी रहती है।
जिन्होने जितना मानव मुल्यो का हास किया आने वाली पिढ़ी ने उसका उतना उपहास किया। इस उपहास से बचने के लिए ही लोग संकिर्ण मानसिकता मे जीने लगते है। उनकी संकिर्णता ही उसके अवनती का कारण होता है। व्यक्ति को अलेपन से डर लगने लगता है। वह हर समय जमात मे रहने लगता है। जिससे उसकी मानसिक कार्य उर्जा बनी रहे। दिर्ध सोच की क्षमता मे कमी आती है। शासन व्यवस्था तो बदले समय के साथ बदल जाती है। रह जाती है ओ यादें जो हर मैके पर दोहरायी जाती है।
किये गये कार्यो का मुल्यांकन तो हर पिढ़ी को लोग करते है तथा उनके कर्ज का बोझ बढ़ाते जाते है। बिरोधी की वात करे तो वह कार्य संपादन के समय ही रहता है जो कार्य नियंत्रक के रुप मे सराहे जाते है। विरोधी का नुकसान उन्हे खुद को उर्जवान बनाता है कि वह मानव मुल्यो के रक्षा मे अपने को लगाया है।
विभिन्न कारणो से मानव मुल्यो का हास होता रहा है। लेकिन इसके उत्कर्ष मे किये गये कार्य का ध्रवीकरण होने के कारण मानव को ओ फैदा नही हुआ जिसका ओ हकदार था। आज बिश्व एक बाजार बन गया है। किसी न किसी कारण से एक दुसरे पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, लेकिन विद्वेश भी उतना ही बढ़ा है। बिनाश की कहानी भी बड़ी होने लगी है। जितना जल्दी चेतना संसार मे लैटे उतनी ही बिकाश की धारा चलेगी।
अपने उत्कर्ष की कहानी दुसरे को अपने अधिन करके चाहने वाला के उपर मानवता का जो कर्ज बनता है उसका भरपाई कर पाना आसान नही है। ये तो प्रकृति को ही तय करना होगा की उसका सही समय क्या होगा। हमे तो अभी अपने ही दायित्व का निर्वाह करते हुए जीवन के राह पर आगे निकल जाना होगा। जय हिन्द
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लेखक एवं प्रेषक अमर नाथ साहु
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