न्याय की देवी

न्याय सबको सहज और आसानी से प्राप्त हो जिससे समाज के अंदर विश्वास के साथ समरसता का भाव को जागृत किया जा सके। जिससे सत्य और निष्ठा को स्थापित किया जा सके। भारत एक विशाल देश है इसमे समाज के विभिन्न वर्ग के लोग विभिन्न प्रकार के वेशुभुषा, भाषा, रहन सहन के साथ रहते है। इसके विच होने वाली आपसी तनाव और समस्या के निदान के लिए एक उच्च स्तर के न्यायिक व्यवस्था की जरुरत होती है। इसी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए न्याय के प्रतिक को स्थापित किया जाता है। इसमे न्याय होने की पुरी कहानी एक नजर मे समाहित होने के भाव को समावेसित किया जाता है। भारत मे न्याय की देवी की प्रतिमा को सभी न्यायालय मे स्थापित किया जाता है। जिससे की न्यायीक व्यवस्था को सटीकता के साथ समझा जा सके।
प्रतिकात्मकता का अपना ही गुणत्मक पहलू होता है। जिसकी वास्तविकता को समझाकर विस्वास की विचारधारा को बनाया जाता है। पहले के न्याय की देवी के एक हाथ मे तराजू और आँखे पर पट्टी बंधी रहती थी। यानी की न्याय को हम देख नही सकते है पर इसकी सटीकता को बरावरी के आधार पर तौला जा सकता है और ये कार्य सबुतों और गवाहो के आधार पर किया जाता है। बदलते समय मे जांच की प्रक्रिया मे सुधार हुआ है। अब पहले से ज्यादा वारीकी के साथ कार्य को अवलोकन किया जाता है। जरुरी परने पर जांच की विशेष प्रक्रिया को अपनाया जाता है जिससे की सच्चाई के तह तक जाया जा सके।
पहले के समय मे लिखित संविधान नही होता था। राजा ही न्याय के पुरी प्रक्रिया को पुरा करता था। छोटे न्यायिक व्यवसथा के लिए नियुक्त व्यक्ति भी आपनी विचारधारा और स्थाप्य परंपरा के अनुसार निर्णय लेते थे जिससे की न्याय की व्यवस्या सुचारु रुप से चल सके। इसलिए राजा को भगवान का दर्जा प्राप्त था। उसपर सवको विश्वास करने के लिए ही इस निष्ठा की व्यवस्था को स्थापित किया गया था। न्यायशिल राजा की कृर्ति दुर-दुर तक जाती थी। समाज मे न्याय की उच्च व्यवस्था स्थापित करने वाले को वडे सम्मान से देखा जाता था। तब न्याय को वास्तविकता के साथ रिस्ता होता था। जिसमे याचक की पुरी प्रकृति न्याय के सामने होती थी।
भारत मे जब लिखित संविधान को अपनाया गया तब से इसमे भाननात्क स्वरुप कोई स्थान नही रहा। याचक को पुरा सबुत देना होता है जिसके आधार पर निर्णय लिया जाता है। इसमे अपराध करने की पुरी व्यवस्था का वर्णन किया गया है। सवको न्याय प्राप्त हो इसके लिए एक न्यायिक डंड संहिता वनाई गई है जिसमे हर तरह के अपराध के लिए एक नियत सजा का प्रवधान है। जिसको की समय समय पर संसद के द्वारा पुनरिक्षण किया जाता है और अपेक्षित सुधार किया जाता है। जिससे की समाज को सही रुप से न्याय प्राप्त हो।
भारत मे न्याय की देवी की प्रतीकात्मक व्यवस्था मे वदलाव किया गया है। नारी का स्वभाव शांत और सहनशील होता है जिससे की न्याय करते समय किसी भी विरोधाभास को राका जा सके। इसमे न्याय की देवी के आँख से पट्टी हटा दी गई है। यह इस विचार को प्रतिपादित करता है कि न्याय अब आँख मुंदकर नही किया जा सकता है। वांया हाथ मे तलवार की जगह पर संविधान की किताव दि गयी है। वही दाहिने हाथ मे तराजू जो समाज मे बराबरी का प्रतीक है। यदि न्यायाधिश को लगे कि न्याय के लिए जरुरी प्रक्रिया को और गराई की जरुरत है तो जज जांच का आदेश देते है जिसमे सत्यता की पुरी परताल की जाती है इसके बाद ही न्याय की प्रक्रिया को पुरा किया जाता है। यह बदलाव खास तरह के बिचार को रखकर किया गया है। आजकल डिजिटल युग का समय आ गया है जहां क्लोज सर्किट कैमरा लगातार अपनी निगाहें समय और परिस्थिती पर बनाये रखता है और घटित होने वाली घटना की पुरी कहानी को चित्रवत रुप मे रख देता है।
जहां पर कैमरा नही होता है वहां पर जांच की व्यवस्था अपनाई जाती है जो अत्यंत ही वारीक तरीके से समस्या को बिस्लेशित करते हुए कारण के तह तक पहुँचकर पुरी व्यवस्था को पारदर्शी तरीके से सबके सामने रख देता है। इस तरह की व्यवस्था पहले के समय मे नही था। न्याय के देवी के व्यवस्था मे वदलाव के साथ ही न्याय की प्रक्रिया भी लोगो के लिए सहज और समय के साथ पुरा होने वाला हो इसकी कामना हम करते है और आशा करते है कि लोग बदलते समय मे खुद को सत्यता के साथ जोडकर समाज को उन्नत व्यवहार के लिए प्रेरित करते रहेगे।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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