दिदी का 26 वाँ मैरेज-एनिवर्शरी लेख
जीवन के आधी पड़ाव पर यदि जीवनसाथी साथ छोड़ जाये तो आने वाले दिन का अनुमान लगाना कठीन होता है। समय के साथ जीने की काल को सिखना पड़ता है। उपलब्ध संसाधन का उपयोग करते हुए जीवन निर्वाह करना बहुत ही कठीन होता है। जीवनसाथी के गुजरने के बाद के पहले सादी के साल गिरह पर अपने बेदना को भरोसा से सवांरती एक नारी की आपबीती की कहानी को कहता यह कविता हमारे अंतःकरण को छु जाता है।
मानव को यदि भविश्य का ज्ञान होता तो वह कोई न कोई जतन जरुर कर लेता जिससे की उसका आने वाला कल का प्रभाव बहुत खराव न होता। लेकिन यह संभव नही है। कहा जाता है कि मानव को भुलने की प्रबृत्ति आने वाले समय के साथ यथेष्ठ रुप से कार्य करने के लिये है। वह अपने अतीत तथा भविश्य को लेकर आशंकित नही रहे। क्योकि दोनो ही का सम्बन्ध एक जटील प्रक्रिया का अंग है।
हमने देखा है कि यदि व्यक्ति को भविश्य का ज्ञान हो भी जाता है तो वह समय के साथ अपने स्वभाव को गुणित नही कर सकता है। क्योकी स्वभाव का सम्बन्ध हमारे शारीरिक जैविक क्रिया से होता है। जिसका हम संयम से अनुकुलित करने का प्रयास कर सकते है पुरी तरह बदल नही सकते है। हमे अपने आपके को लक्ष्य को ध्यान मे रखकर कार्य का संपादन करना होता है। इसलीये भी यह कार्य कठिन है।
प्रस्तुत कविता मे इसी भाव को रखकर यह मांग की गई है, कि हे मेरे जीवन साथी मुझे आने वाली समय से लड़ने की ताकत हमे दे। जो आदर्श स्थापित हुए है, उसका पालन करते हुए समाज को एक मिशाल दे कर जीवन को अंत कर दे। अर्जित की गई जीवन मुल्य का फलाफल आत्माीय भाव को गढ़ता है, जो हमे आत्म संतुस्टि का भाव बनाता है। आंतरिक उर्जा का ऐसा प्रवाह बनता है कि वर्तमान एक प्रयोगशाला बन कर रह जाती है, और अंत एक सुखद एहसास दे जाता है।
जीवन संधर्ष की ऐ कहानी एक जीवंत घटना पर आधारीत है, जो सदा ही मानव समाज को निर्देशित करता रहेगा। हे मानव एक दुसरे के जीवन का साथी बन कर अपने पुण्य का मुल्य बढ़ा ले पता नही कब तुझे भी तुफान का समना करना पड़े। जय हिन्द
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु