सोलहवां जन्मदिन एक बिशेष समय होता है। ये जिवन का एक ऐसा मोड़ होता है जहां से विकाश की अनेक धारायें निकलती है। यह समय नियंत्रण एवं निश्चय का यदि हो तो आने वाले समय के साथ हम अपना न्याय कर सकते है। यदि हम यहां कोई चुक कर बैठते है, तो आने वाला समय हमारे लिए कठिन हो जायेगा। हमारा भौतिक शरीर एक बदलाव की दौर से गुजर रहा होता है। नयी-नयी अनुभुतियों का संचार हमारे शरीर मे होने लगता है। बहुत सारी जानकारी को छुपाकर हम रखते है। यह यदि हमारी बृती बन जाये तो हमारा मन कलुषित हो सकता है। खुले बिचार का होने से आने बाले समय का मुकाबला अच्छा से होता है।
कहने सुनने के दिन के साथ स्वयं के बिचार का भी समाबेश होने लगता है। मानसिक बृति का सम्बन्ध सिधा बच्चे कि क्रिया कलाप से होता है। परिवर्तन की धारा को सही बनाने के लिए उसके मनोदसा को समझना बहुत जरुरी होता है। जिससे की उसको उलझने से रोककर उसका उपचार किया जा सके। हमारा समाज आज एक नये बदलाव के दौर से गुजर रहा है। जहां लोग एकाकी जिवन को पसंद करने लगे है। जिससे नये समाज के बिच संबाद कम हो गया है। जिसके कारण जिवन मे बिकार ज्यादा बढ़ने लगा है। कई अनहोनी की धटनायें समय से पहले होते देखने को मिलता है। इसलिए हमारी सतर्कता हमारे जिवन के एक नया अर्थ देगा।
दोस्तो का भी एक महत्पुर्ण रोल होता है। बच्चे अपनी आंतरिक परेशानी को अपने सहपाठी से हल करने की कोशीश करते है। यदि सहपाठी का व्यवहार गलत हुआ तो बच्चो को बिगरने की चांस बहुत रहता है। समय के साथ बढ़ती हमारी जानकारी हमें एक कुशल व्यक्ति बनने के प्रेरित करेगा इसके लिए एक संकल्प शक्ति के साथ नियंत्रण का होना परम आवश्यक है।
समय के गति तथा उसका सही समायोजन ही जिवन जिने की कला को दर्शाता है, जिसे लोग भी सराहना करते है। धारा के साथ तो तिनका भी उड़ जाता है लेकिन उसका इतिहास नही बनता है। इसी तरह मन की धारा के साथ बिना नियंत्रन चलने वाला भी सही बास्तविक लक्ष्य तक नही पहुंच पाता। सतत प्रयत्नशिल रहना तथा हर पल को समझने की कोशीश करना एक जिवन जिने का कालात्मक योग है जिसे अपना कर हम पुर्ण शांन्ति को पा सकते है। जय हिन्द
आप अपना बिचार अवश्य रखे जिससे लोगो तक आपका संदेश बिचरित होता रहे। आशा की बिश्वास को जो धारा हमने बनायी है वो बनी रहनी चाहिए इसलिए आपका मार्गदर्शन हमारा साथी बन सकता है। नमस्ते
सोलहवां जन्मदिन जीवन के युवावस्था के शुरुआत का दिन होता है। इस समय मानव शरीर मे कई के तरह के बदलाव देखने को मिलता है। युवावस्था को आनुभव कर रहा बालक स्वयं मे हो रहे बदलाव को लेकर अनभिज्ञ रहता है। इनके एहसास के साथ उसके मनोबृती मे भी बदलाव आने लगता है। जिससे उसके सामान्य स्वभाव मे भी बदलाव देखने को मिलता है।
बदलते शारीरिक बिन्यास के साथ वह अपने परिवेश के साथ भी सामंजश्य स्थापित करने लगता है। जिससे कि उसके स्वभाव का निर्माण होना शुरु हो जाता है। हमारा परिवेश हमें वह सिखलाता है जिसका समाज मे प्रभुत्व होता है। इसलिए यहां बच्चो को एक उन्नत बिचार से युक्त समाजिक व्यवस्था का हिस्सा बनाने की कोशीश रहती है। जिसको की आज हमलोग बर्थ डे के रुप मे मनाते है।
भारत मे परंपरा रही है की हमलोग गुजर गये लोगो को याद करने के लिए उनके जन्मदिन को मनाते थे। उनकी जीवन गाथा से कुछ सिखने का प्रयास रहता था। लेकिन पश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करते हुए भारतीय भी उसी राह पर निकल पड़े है। हमारा स्वयं का आसपरोस भावमय हो जिससे की बिकाश की धारा को स्थापित किया जा सके।
पहले का माहौल भी कमोवेश सिमित था लोगो का स्थानीय जुड़ाव ज्यादा होता था लेकिन आजकल का माहौल तो वैसा नही दिखता है। इसलिए इह बिचारधारा को आगे बढ़ाना सही भी लगता है। कहते है जीवन मे हर रंग हो लेकिन उसका ढंग निराला हो जिससे जीवन सुन्दर गढ़ने वाला हो।
हे मानव, जीवन का पड़ाव कोई भी हो तुम तो एक राही हो, तुम एक लम्बी यात्रा पर निकल चले हो। तुम्हारा यह समय बड़ा नाजुक पल है, तुम वही करो जो तुम कर सकते हो। अपना लक्ष्य साधित करो तथा अपने सानिध्य वाले को भी इसी बिचार धारा से प्रेरित करो या वैसा माहौल मे जाओ जिससे की तुम्हारा समग्र कल्याण हो। कोई सुगम सुखमय मार्ग न तलासो। माया की छाया तुम्हे भटका देगा। आपने परमात्म को हमेशा याद करो वह हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहेगा।
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लेखक एवं प्रकाशकः- अमर नाथ साहु
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