पुकार

एक पुकार

एक पुकार

एक पुकार 21 वीं सदी मे समाज के बढ़ते सुख के साधन के साथ चुनाव की समस्यायें भी बड़ी हो गई है। जीवन की वास्तविकता से सत्य को खोजता मानव सुखी और संतुष्ट होना चाहता है, लेकिन उसके पास जो, स्रर्वश्रेष्ठ आरोहन करने की मनोभाव है, उससे एक पुकार बनी रहती है। इस पुकार के आंतरिक हलचल को बाहर के व्यवस्था से पुर्ण हुआ जाना जरुरी है।     तनाव रहीत मन मस्त होता है। मस्त मन को बदलाव अच्छा लगता है। वदलाव के साथ जो खुशी का तरंग आता है, उसको विस्तार की जरुरत होती है। विस्तार के साथ सहयोग…
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