गुरु पुर्णिमा
गुरु कि महिमा को जागृत करने के ख्याल से गुरु पुर्णिमा पर्व का स्थान र्स्वोत्तम है। गुरु की यशोगान करने से गुरुत्व का भाव जो मन मे बनता है उससे हमरी नारी का स्पंदन बढ़ने लगता है। गुरु का एक-एक वाक्य हमरे सामने से गुजरने लगता है। हमारे मार्ग के अवरोध को हटाने मे हमारे द्वारा किया गया प्रयास की मान दऩ्ड बनने लगता है। हमरा तरंगित मन हमे सचेत करता है तथा नये उमंग के साथ कार्य को आरंम्भ करने की प्रेरणा देता है।
गुरु के सृजीत पथ पर चलकर जो हमारा कल्याण होता है उसकी भरपाई हम शब्दो मे नही कर सकते है। सफलता का सोपान पाने के लिए गुरु का मार्ग दर्शक होना ऐसी ही जरुरी है जैसे पानी मे नाव को खेने वाला नाविक। यह पर्व हमें संकल्प देता है कि गुरु की गाथा को बनाये रखे इसीसे जगत का कल्याण संभव है। नयी चुनौती का सामना करने के लिए हमे एक प्रारुप की जरुरत होती है जो हमे गुरु से ही मिलता है। जिसके सहारे हम चलकर लक्ष्य को प्राप्त कर लेते है।
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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