गुरु पुर्णिमा

गुरु पुर्णिमा

गुरु पुर्णिमा

          गुरु मे गुरुत्व होता है। यह गुरुत्व ही उनकी खास बिशेषता की परियायक होता है। उनके साधना से जो लक्ष्य की
प्राप्ती उनको होती है वह सदा ही अनुकरणिय होता है। जब हम गुरु की शरणगत होकर
कार्य आरम्भ करते है तो गुरू का मार्गदर्शण हमे मिलता है। गुरु से निर्देशित हमारे
जीवन का ओ मार्ग सुगम हो जाता है जो गुरु के निर्देशित मे किया जाता है। इसके आगे
के मार्ग की सुगमता हमारी कार्य अनुशासन हमे सिखाती है जिसमे हमे गुरु की साधना के
अनुभव हमारी राह को आसान बना देता है।

       जीवन मे उदेश्य के प्राप्ती के लिए किये जा रहे प्रयास मे आज मानव जिस मुकाम को हासिल कर रहा है उसमे गुरु की भुमिका  महत्वपुर्ण है। मार्गदर्शक गुरु हमारे जीवन के साधना के मार्ग से हमारी निष्ठा,
चिंतन-मनन, हमारी चेतना, हमारी सजगता के साथ स्वभाव और संस्कार के निर्माण मे भी
महत्वपुर्ण भूमीका निभाते है।

      हम जिस समाज का भाग है उसमे सतत परिवर्तन का
दौर चलता रहता है। हमें समय के साथ सार्थक परिवर्तन करते हुए समाज को नये उँचाई पर
ले जाना होता है। इस कठीन कार्य को करने के लिए कई तरह के मार्ग होते है लेकिन
सुगम और हमारे लिए उपयुक्त मार्ग के बारे मे गुरु हमारी मदद करते है, जिससे हमे
लक्ष्य के प्रति हमारी लगन गहरा होता जाता है।

      गुरु पुर्णिमा का ये पर्व हमे गुरु की महत्ता
को समझाता है। हमे जीवन मे आगे बढ़ने के लिए गुरु को बताये मार्ग और नियम के साथ
बिकास मे आगे की कड़ी को जोड़ने की प्रेरणा देता है। जिससे की समाज के कल्याण का
मार्ग सुगम हो सके।

      गुरु कि महिमा को स्वयं के अंदर जागृत करने
के ख्याल से गुरु पुर्णिमा के पर्व का स्थान र्स्वोत्तम है। गुरु की यशोगान करने
से गुरुत्व का भाव जो मन मे बनता है उससे हमरी नारी का स्पंदन बढ़ने लगता है। गुरु
का एक-एक वाक्य हमरे सामने से गुजरने लगता है। हमारे मार्ग के अवरोध को हटाने मे
हमारे द्वारा किये गये प्रयास की मुल्यांकन को गुरु का नजरीया मददगार होता है। हमारा
तरंगित मन हमे सचेत करता
  है तथा नये उमंग के साथ कार्य को आगे ले जाने की प्रेरणा देता है।

           गुरु के सृजीत पथ पर चलकर जो हमारा कल्याण होता है उसकी भरपाई हम शब्दो मे नही कर सकते है। सफलता का सोपान पाने के
लिए गुरु का मार्गदर्शक होना ऐसी ही जरुरी है जैसे पानी मे नाव को खेने के लिए नाविक
का होना जरुरी होता है। यह पर्व हमें संकल्प देता है कि गुरु की गाथा को जगाये रखे
जिससे स्वयं के साथ ही जगत का कल्याण संभव हो। नयी चुनौती का सामना करने के लिए
हमे एक प्रारुप की जरुरत होती है जिसमे गुरु सहायक होते हैं। जिसके सहारे हम चलकर
लक्ष्य को प्राप्त कर लेते है।

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

संबंधित लेख को जरुर पढ़ेः-

By sneha

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!