शिक्षा दान

शिक्षा दान

शिक्षा-दान

 गुरु शिष्य की परम्परा सदियों से चली आ रही है। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात गुरू दक्षिणा लेने की कथा बहुत कम मिलता है। एक प्रसिद्द कथा महाभारत काल मे कर्ण की आती है। कर्ण जब छोटा था, तब उन्हें गरु द्रोणाचार्य ने शिक्षा दान देने से इंकार किया था, जिसके जवाब मे कर्ण ने कहा- गुरु जी शिक्षा दान मे लेना भी नही चाहिए। लेकिन बाद मे उनके गुरु परशुराम ने उन्हे शिक्षा दिया। उन्होने कहा तुम ने जो वात्सल्य प्यार हमे दिया है- वही हमारी  दक्षिणा है। हम सभी इस महान शिष्य की गाथा से परिचित है, जिन्होने महाभारत मे अपना अमुल्य योगदान दिया। समाज के व्यवस्था मे एक बालक अपने अस्तित्व को खोजता हुआ अंत मे जिस मुल्य निर्धारण तक पहुँचा तब तक देर हो चुकी थी। लेकिन कर्म योगी की भांति उसने भारतीय समाज को एक नाजुक एहसास कराया।  शिक्षा बच्चो का प्राथमिक अधिकार है, उसे पाने का पुरा हक है। इसमे दोनो की महानता निहित है। इस कार्य को करने वाले लोग समाज के लिए सदा आदरनीय रहे हैं। जाति, धर्म सम्प्रदाय से मुक्त विश्वास  लोगो ने जताया है। तभी तो आज भी कुछ लोग इस कार्य को करने मे आनन्द अनुभव करते है।

इस भाव को व्यक्त करता यह काव्य हमें आगे आकर समाज के वंचित लोगो को साथ देने की प्रेरणा दे रहे है। लेखक ने एक भावपुर्ण बिचार को चिंतन के लिए रखा है, जिसका तो सराहना होना ही चाहिए। इस कार्य मे लगे जिन लोग ने अपनी तस्वीर दी है, हम भी उनका सम्मान करते है। बन्धुगण जीवन धारा तो चलता है, और चलता ही रहेगा। लोग माया मे उलझे फतिंगे को प्रकाश की लौ पर जान देते देखते रहेंगे। लेकिन कुछ लोग गुरु परशुराम कि भांती भारतीय समाज का प्रेरणा श्रोत बनते रहेंगे। आप सब इस पुनित कार्य मे शामिल हो ऐसा ही अनुरोध लेखक के द्वारा किया जा रहा है। आप जहां है, जिस व्यवस्था मे है, वही से शुरुआत कर सकते है। आपको दिव्य रुप आलौकिक प्यार लोगो का सदा मिलता रहेगा। आप समाज के उत्थान के प्रेरणा श्रोत बने रहेंगे।

लेखक के भावपुर्ण अनुरुध को हमने सराहा और आप लोगो तक इस संदेश को पहुँचाने का मार्ग आपके के प्यार से सम्भव भी हो रहा है। आशा ही नही विश्वास है, कि आपका भी पुरा प्यार उन्हे मिलेगा। आप अपनी प्रतिक्रिया दे सकते है जिससे कि लोगो को प्रोत्साहन मिल सके। एक-एक शब्द से वाक्य बने, एक-एक व्यक्ति से समाज, आओ मिलकर कर हमसब करे एक समुचित प्रयास। समाज के दवे कुचले लोग जो अपनी व्यथा को बतलाने तक की जहमत नही उठाते। उनके पास पहुँचकर उनके बच्चो को जब हम मुफ्त ज्ञानार्जन कराते है, तो उनका हाथ ऊपर उठता है, और ओ ऊपर वाले से आपके लिए दुआ मांगते है। ये दुआ शायद खुद के मांगे गये दुआ से सहस्त्रों गुणा ज्यादा है। तो फिर क्यो न इस लाभकारी कार्य मे अपना योगदान दे। कार्य शुरुआत की प्रेरणा यदि आपमे जागी है, तो आप लेखक से पुर्ण सहयोग प्राप्त कर सकते है, इसके लिए आप अपनी प्रतिक्रया कोमेंट बाक्स मे लिखे। आपको अपेक्षित सहयोग मिल जायेगा साथ ही यह दुसरो के लिए एक प्रेरक वाक्य भी बन जायेगा। आपकी महानता गुणीत  भी हो जायेगी।

कुछ कदम हम चले कुछ आपका साथ हो, तो मंजिलें चलने मे पुरा बिश्वास हो। बन्धुगण काव्य की  अभिव्यक्ति को आप सराहेंगे ऐसा हमारा विश्वास है। आप सभी पाठक का बिशवास ही हमें बहुआयामी लेख को डालने की प्रेरणा देता रहता है। आशा है आपका प्यार हमें इसी तरह सतत मिलता रहेगा। एक बार फिर आप लोगो को लेखक की तरफ से सहृदय प्रेम, और सम्पादक के तरफ से नमस्कार।

नोटः यदि यह लेख आपको अच्छा लगे तो अपनो तक इसके लिंक को जरुर भेजे जिससे से उनका भी कल्याण हो और आपका सम्मान बढ़े । जय हिन्द

लेखकः सुबोध शास्त्री

सम्पादकिय लेख एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

By sneha

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!