Pyara gulab

खुद से गुलाब

प्यारा गुलाब

गुलाब से खुद का हिसाब

आज के भाग दौड़ की जिंदगी में स्वयं को व्यवस्थित कर पाना एक चुनौती है। इस चुनौती से निकलने का जिद्दोजहद लगातार चलता रहता है। कुछ तो सफल हो जाते है, कुछ भटक कर कही खो जाते है, कुछ का प्रयास अनवरत चलता रहता है। उपरोक्त उक्ति स्वयं के अंदर की भाव को समझने को प्रेरित करता है जिससे की व्यक्ति समय के साथ खुद का न्याय कर सके।

हमारे द्वारा अपनाए जा रहे हर विधा का मूल्यांकन समय के साथ समाज के अंदर किया जाता है जिससे हमे स्वयं को स्थापित करने में मदद मिलती है। यहां हम स्वयं की विशिष्टता से अवगत होते हुए एक बदलाव की तरफ आगे बढ़ाने को प्रेरित होना चाहते है, जिससे की हमारा समग्र विकास हो सके।

समय के साथ यथेस्ट बने रहने के लिए मानसिक आवेग को समझना जरूरी होता है जो एक आंतरिक संचालित प्रक्रिया है। इसको समझते हुए एक योग विकसित करने की जरूरत है जिससे की कल्याणकारी मार्ग का रह प्रशस्त हो सके।

लेखक एवं प्रेषक:: अमर नाथ साहू

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प्यारे हो के एहसास को गतिशीलता के साथ जीने के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति की जरूरत है जिसमे यह उक्ति जरूरी उपाय समझता है।

साधारण ट्रेन में यात्रा अनुभव से मिली एक सिख को दर्शाता ये काव्य लेख हमे सावधान रहने के लिए जरूरी उपाय समझता है।

प्यारा गुलाब से खुद को समझने का एक अनोखा एहसास हमे जीवन के समझने का एक मौका प्रदान करता है जिससे की हम स्वमुल्यांकन कर सके इससे इस उक्ती को समझा जा सकता है।

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By sneha

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