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खुद को संभाल

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खुद को संभाल सहेली

जीवन में शादी एक अनोखा उत्सव है इसमें मानसिक चंचलता अपने चरम पर रहता है। एक नए जीवन के प्रति उत्साह का अपना अलग ही उमंग होता है। साथी सहपाठी के प्रती जुड़ाव से उसके प्रती आत्मीयता और बढ़ जाती है। उसमें नवीन बिचारों का एक मादक व्यवहार दिखाई देने लगता है लेकिन अपने – अपने सीमा के अधिन ही बिचारो का आदान प्रदान होता रहता है। ऐसी ही एक बिचार को व्यक्त करता ये युक्ति जीवन मे आने वाली संभावना के प्रती बिचार को स्थापित करने का एक योग है।

अपनो के दावारा दिया गया हर बिचार एक अलग पहचान बनाता है जो जीवन के मुश्किल धड़ी मे समस्या के समाधान के समय मानसिक पटल पर प्रतिविम्वित होते हुए जगााता है तथा आने वाली मुश्किल परिस्थिती आसान लगने लगता है। वैसे तो समस्या हमारे व्यवहार का भाग होता है जिससे पार जाने के लिए हमे सतत प्रयत्नशील रहना होता है। लेकिन सानिध्य के स्तर से दिया जाने वाला बिचार वड़ा ही प्रभावकारी होता है। इसलिए समय – समय पर अपनो के द्वारा बिचार की संप्रेशन हमे ताकतवर बनाती रहती है।

भाव की तन्नमयता के बिच अपनों के साथ किया जाने वाला यह वार्ता बेहद व्यक्तिगत होता है जिसकी समझ, समय के साथ ही बंधनकारी होता है। वैसे तो आज के बदलते माहौल मे बिषमता बहुत है लेकिन अपने के प्रती हमारा व्यवहार और बिचार का स्तर हमेशा से उँचा रहा है।

इस बिचार की संबेदनशिलता को सराहते हुए नवदम्पती के लिए सुखमय जीवन की कामना करता हुआ आप सभी को नमस्कार।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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By sneha

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