जीत के राही
जीत यदी जीवन के कार्यशौली का हिस्सा बन जाय तो समझना होता है कि व्यक्ति को कार्य करने का नजरीया बदल गया है। वह कार्य को जीत के हिसाव से देखता है और स्वयं को उसी तरह से व्यवहार भी करता है। जीत की खुशी सारे खुशी पर भारी परती है। जीतने वाला व्यक्ति का बतचीत और समय प्रवंधन सटीक होता है। उसे पता होता है कि वह क्या, क्यो और कैसे कर रहा है। उसकी पैनी नजर कार्य के प्रगती पर रहती है। समय के साथ कार्य मे बदलाव की यदी जरुरत होती है तो उसको त्वरित गति से करते हुए कार्य को जीत की ओर ले जातें है। कार्य के प्रत्येक पहलू के साथ जुड़ना होता है और समय के साथ प्रगति को निरिक्षण भी करना होता है। यदि कार्य अवरोध होता नजर आता है तो उसके त्वरित समाधान के लिए कार्य विचार किया जाता है और उचित समाधान के साथ आगे जाया जाता है।
कार्य को करते हुए जो खुशी की अनुभूति होती है वही जीत की ओर कार्य को अग्रसर करती है। कार्य के प्रत्येक विधा को सही तरह से होने के प्रति जो व्यक्ति का लगाव होता है वही कार्य को जीत की ओर अग्रसर करता है। मनोभाव ही वह गुढ़ है जो कार्य के प्रति लगाव पैदा करता है। जिससे चिंतन मनन के साथ अवलोकन और कार्य वदलाव को करते हुए खुशी को पाया जाता है।
कुछ सिखते रहने की प्रबृति जीवन को नये आयाम से जोड़ती है और जीत के लिए नयी जिज्ञासा भी पैदा करती है। हमारे आसपरोस मे होने वाला कार्य के फलाफल से विना प्रभावित हुए भी अवलोकन से सिखने की प्रबृति एक योजपुर्ण बिषय होता है जिससे विकाश की यात्रा सुलभ होती है। सही व्यक्ति और सही समय का चुनाव भी खुद ही करना होता है जिससे की नया करने की जजवा को गती मिले। कुछ जानने के लिए जुड़ना होता है और जुड़ने के बाद बैचारिक व्यवस्था से कुछ सिखना होता है यह एक कलात्मक पहलू है जो व्यक्ति का स्वभाव होना चाहिए।
स्वयं पर नियंत्रण जरुरी है। अनावश्य कार्य मे उलझने के वजाय वहां से निकलना उचीत जान परता है यह विधा उसे समय प्रवंधन के प्रति जिम्मेदार बनाती है। जिससे जीत के सोपान पर चढ़ने की प्रक्रिया आसान होती है। समस्या कितनी भी कठीन हो कार्य करने के ततपरता के कारण और कार्य से लगाव उसे रास्ते खुद व खुद बनाते है। उसे बस कार्य के प्रति निष्ठावान बने रहना होता है। जीत के लिए मित और प्रित बनाने की कला एक व्यवहारात्मक पहलू है इसमे स्वयं की समझ को निखारना होता है और आगे बढ़ना होता है।
जीत तो जीत है यही वह गीत है जिसे गाने के वाद खुशी हमेशा बनती रहती है। सिखने के लिए प्रेरण जरुरी होता है और प्रेरणा जीत चाहने वाले के लिए एक उपयोगी तथ्य है। इसके लिए स्वध्याय जुरुरी होता है जिससे की बिचार की सुदृढ़ता बनी रहे। जय हो।
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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