
आत्महत्या की प्रवृति
आधुनिक समय मे जीवन की चुनौतियां बढ़ी है जिससे आगे बढ़ने के लिए लगातार सार्थक प्रयास की जरुरत होती है। पर इतना ही काफी नही है इसके अलावा भी उच्च कोटी के प्रयास की जरुरत होती है जिससे की प्रतियोगिता मे आगे निकल सके। सफलता के मानडंड को पुरा करने के लिए इस तरह के प्रयास को शुरु से ही ध्यान देना होता है जिससे की लक्ष्य को समय से साधा जा सके।
जीवन की इस आपधापी मे होने वाले तनाव को झेलने के लिए सामर्थवान होना जरुरी है। इसमे किसी भी प्रकार की कमी होने से तनाव को कम करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय मे एक सफल गुरु की जरुरत होती है जो इस परिस्थिती से निकलने के गुर सिखाते है तथा उसके अनुरुप सफलता को उपाय को गढ़ते है।
यूं तो सबके लिए इसको चुनौतीपुर्ण रुप से लेना तथा इसका समाधान निकलने की जरुरत होती है। वड़ो को खुद के समझने के लिए एक प्रयाप्त दायरा होता है। वही पर बच्चो के लिए यह कठीन होता है क्योकि बच्चो का दायरा कम होता है। उसका पुरा नियंत्रण माता पिता और उसके गुरुजन तक सिमित होता है। उसको सोचने और सझमने के लिए माता पिता के द्वारा किये गये प्रयास काफी कारगर सावित होते है। बच्चो मे बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृति को रेखाकित करता यह काव्य लेख एक 12 साल के बच्चे के द्वार किये गए आत्महात्या को ध्यान मे रखकर किया गया है।
मातापिता को अपने बच्चो को कॉनसेलिंग कराकर उसके सामर्थ के अनुसार कार्य भार देना चाहिए। कार्य सही से हो उसके लिए एक उत्तम व्यवस्था उपलब्ध कारकर उसको आगे बढ़ान के लिए उसके व्यवहार को नियंत्रण करना चाहिए । जबकी अभीभावक ये चाहते है कि उनका जो सपना है वो वच्चे पुरा कर ले। इसके चलते बच्चो पर दवाव रहता है। वहुत सारे बच्चे अपने दवाव को झेल जाते है लेकिन औसत दिमाग के बच्चे इस दवाव को नही झेल पाते है जिसके उसके मानसिक संतुलन बिगरने का समस्या बन जाता है।
बच्चे अपनी पुरी कार्यक्षमता से साथ कार्य करते हुए भी यदी आगे नही बढ़ पा रहे है तो उसकी कुछ व्यक्तिगत समस्या होती है जिसके सामाधान की आवश्यकता होती है। इस समाधान से वह अपने उच्च कार्य क्षमता का परिचय देगा और वो कार्य के सही समय पर कर सकेगा। इस तरह के माहौल को बनाने की जरुरत होती है। जवकी व्यवहार मे इस तरह की व्यवस्था देखने को नही मिलता है।
बात पढाई की हो तो देखा जाता है कि विना आंशिक तनाव के पढ़ाई होता भी नही है इसके लिए एक संतलुतित व्यवहार की जुरुरत होती है। वच्चो से साथ लागातार वातचित की आवश्यता होती है कि उसकी कमजोरी कहा है और हम क्या कर सकते है। समय के रहते सही निश्कर्ष पर पहुच कर समस्या निदान करते हुए हमे आगे बढना होता है नही तो निराशा उतपन्न हो जाता है।
निराशा के पल को दुर करने की जरुरत है। निराशा खिन्नता को जन्म देता है। खिन्नता खुद को झतथझोर देता है। वह आंतरिक क्रिया वल से पुर्ण कार्यक्षमता के साथ कार्य को करते हुए एक सही सामाधान तक पहुँचकर शांति के मार्ग का आवलम्बन चाहता है। यदि पुरी शक्ति के बावजुद भी सही व्यवस्था को नही बना पा रहा है तो उसकी निराश उसका ध्यान भटका देती है। अव वह बहाने वनाकर स्वय को शांत करने की तवकीव खोजने लगता है। इसके कारण वह कुन्ठा का शिकार हो जाता है। इस कुन्ठा के कारण उसको किंकर्तव्यविमुढ़ की स्थिती आ जाती है। जहां से यदी वह सही निर्णय नही बना पाता है तो उसके पास अव वहुत सिमित रास्ते बच जाता है जहां से वह खुद को तनाव मुक्त कर सकता है।
आजकल गुरु व्यवसायिक नजरिये से कार्य को करते हैं। उनका मुख्य उदेश्य धन की उगाही करना होता है। जिससे की वच्चो के वास्तविक विकाश मे वाधा आती है। वच्चो के व्यक्तिगत व्यवहार के बारे मे जानने की कोई जरुरत उन्हे नही होती है जिससे की बच्चो मे हिनता का भाव बनता है जो उसको दुसरे बच्चे से अलग कर देता है। यही अलगाव उसे धोर निराशा के अंधकार मे धकेल देता है जहां से निकलना मुश्किल हो जाता है। वह अपनी समस्या का हल तो देखता है पर वह उसे चाहकर भी नही पा सकता है तो उसकी आंतरिक शक्ति उसे गलत रास्ते पर ले जाती है।
यहां से कई रास्ते निकलते है हर रास्ता पर वारिकी से विचार की जरुरत होती है। इसी वारीकी को समझने के लिए मन लगातार प्रयत्न करता है और सही सामाधान तक पहुचने के कोशिश करता है लेकिन कोई न कोई ऐसी वाधा आती है जिससे की पार करना मुश्किल लगता है। आव वह खुद ही प्रश्न् करता है और खुद ही जबाब भी देता है। ऐसा करते हुए वे शांतचित रहने लगता है वह बाहरी दुनीया मे रहते हुए भी वाहरी दुनीया से अलग जीवन जी रहा होता है। यही समय होता है उसके मन के आंतरिक अवस्था को समझकर उसको एक दिशा मे आगे बढ़ने के लिए प्रयास करने की।
यहां से वह खुद को असमर्थ और असहाय मानने लगता है जवकि उसके पास लक्ष्य की सिमित यात्रा को करने की पुरी निष्ठा मौजुद होती है। वह खुद को बही खारा देखता है कि वह अपने लक्ष्य को पा लिया है लेकिन फिर देखता है कि उसको पाना असंभव है तो वह एक युक्ती निकालता है। यह युक्ति .यदि नाकरात्मक होती है तो फिर उसकी जीने की इक्क्षा ही जवाव देने लगती है। यहां उसकी जीत की आकांक्षा और उसके कार्य क्षमता के आंकलन ही उसके आत्मह्त्या के प्रबृति को जागाता है।
अब वह स्वयं के लिए एक रास्ता चुन लिया है जहां से उसका एकाकीपन उसका साथी बन जाता है। वह सवसे मिलता है लेकिन उसके मन के आंतरिक भाव से सारे अनजान रहते है। फिर वह मौके के तालाश करता है कि वह खुद के लिए कौन सा उपाय लगा सकता है जिससे की उसके इन मानसिक बृति से छुटाकारा मिल जाय। फिर वह जो कर गुजराता है उसके वाद की पुरी कहानी आईने की तरह स्पष्ट हो जाती है।
जब घटना अपने पुर्णता की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तो पुरी काहानी को समझना आसान हो जाता है और ये पता चलता है क्या किया जा सकता था। इसके लिए जुरुरी उपाय की जरुरत है जिससे की इस घटना को रोका जा सके। यदी समय के साथ उसके निर्णय लेने की क्रिया मे हम साहायक हो जाते है या उसकी मानसिक बृति को तोर देते है तो वह फिर एक शांत व्यक्ति की तरह आगे निकल जाता है।
जीवन मे आत्महत्या की प्रवृति भी एक परिस्थिती विशेष की घटना मात्र है इस समय उसका सहयोगी बनकर इसका सही समाधान को निकाला जा सकता है। यहां कुछ विशेष परिस्थिति तथा उपाय की चर्चा हम करते है।
- शांतचीत, एकाकी तथा चेहरे की चंचलता का नही होना एक सदेहास्पद स्थिती है। इसकी गहराई से मुल्यांकन करते हुए इसकी सही समाधान निकालने की कोशीश करनी चाहिए।
- कार्यक्षमता का आंतरिक मुल्याकन जरुरी है इसका अपने सामार्थ के हिसाव से ही कार्य का चुनाव करना चाहिए जिससे कि तानाव कम हो या ना हो।
- कठीन रास्ते पर चलते हुए अपने साथी या गुरु या फिर अन्य जो सबसे भरेसे का आदमी हो अपनी कहानी कहनी चाहिए जिससे की ,सही निर्णय निकले।
- अभ्यास के कुछ टिप्स जिससे की आपके आंतरिक भाव को समझा जा सके आपके मातापिता को लगाना चाहिए। जैसे की स्कुल के बारे मे जानकारी लेना। आपकी खुशी और आपके दोस्तो के साथ होने वाली आपकी प्रतिक्रिया को सुनने की कला का होना। इससे आप उसकी समस्या का हल निकाल सकते है।
- खुद के प्रश्न करने और उसका खुद ही जबाब देने कि सबसे खराव प्रक्रिया है क्योकि इसके बाद ही आत्महत्या का निस्कर्ष निकलता है इसिलिए इससे बचाना चाहिए। आगे जवाव के लिए किसी दिव्य शक्ति को या अपने भरेसे के आदमी को बतालाना चाहिए।
- अपने कमजोर पहलु को लगातार अभ्यास का हिस्सा बनाये तथा उसको दुर करने के लिए आतामचिंतन का उपयोग करे और हमेशा अनुशासन मे रहते हुए स्वध्याय करे।
- भगवान पर भरोसा रखे उसके उपस्थीति का आभाशिक अनुभुती करें और अपने देवारा किये गये कार्य उनको समर्पित करे इससे तनाव कम रहेगा और आप स्वयं को उर्जावान समझेगे।
- आपके दुरदर्शिता आपको सबलता प्रदान करेगा इसके लिए यथेष्ठ बने रहे और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ते रहे।
आत्महत्या की प्रवृति यदि एक निर्णायक मोड़ तक पहुँचकर यदी वर्तमान जीवन को अंत कर लेता है तो उसकी ये आत्मीय अवस्था वड़ा दुखदायी स्थिती मे पहँच जाती है। उसके आत्मिय यात्रा को फिर से उस निर्णायक मोड़ के पास अगले जन्म मे पहुँचकर आगे जाना होता है। आत्मीय जीवन की इस अनंत यात्रा मे ये एक पराव होता है जहां के बारे मे गुजरे हुए जीवन को देखता हुआ आत्मा जब एहसास करता है तो वह फिर से उत्साहित होता है कि अवकी बार वह अच्छा करेगा और फिर एक नये जीवन की कामना करता है। इस परिस्थिती से बचा जा सकता है। यदि याचक कर्ता वर्तमान जीवन मे ही इस समस्या का हल खोज ले तो उसका आनेवाला पल उत्मीय उत्कर्ष का होता है और वह एक नये उत्साहित मार्ग को अपना कर मुक्ति के भाव को अवलम्बन करता है।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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