मकर संक्रांति
हिन्दी कलैण्डर के अनुसार पौष मास के दिन सुर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करती है। इसके साथ ही खरमास समप्त हो जाता है। यहीं से शित ऋतु का अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस समय खेतों मे फसल की कटाई शुरु हो जाती है। किसानों के लिए यह बड़ा ही सुखद अनुभुति लेकर आता है। यहां से दिन धिरे-धिरे लम्बी होनी लगेगी और रात छोटी होने लगेगी। मकर संक्रांति का दिन 14 जनवरी को परता है। यही समय ग्रिगेरियन कलेण्डर के हिसाव से लिप ईयर मे 15 जनवरी को परता है। इस दिन से सुर्य उत्तरायण हो जाते है जिसके कारण वातावरण मे गर्मी बढ़ने लगती है।
इस दिन की शुरुआत उत्सव के रुप मे होता है मन मे कौतुहल रहती है। सुवह-सुवह ही स्नान करके ही कुछ खाने की व्यवस्था होती है। खाने मे पहले तिल को खायी जाती है इसके बाद ही कुछ खाया जाता है। इस दिन से पुजा पाठ की शुरुआत भी हो जाती है। जिसके घर मे कुलदिवता की पुजा होती है उसके वहां पहले कुलदेवता को तिल का चढ़ावा चढ़ाया जाता है ततपश्चात लगों मे इसको प्रसाद के रुप मे वितरित किया जाता है। फिर सभी सदस्यो को मिथिला मे विशिषकर दही चुड़ा खाने का रिवाज है। नया चुरा पहले से बनवाकरके रखा जाता है। दही चुड़ा को सुद्ध भोजन कहा कहा जाता है।
इस दिन पवित्र नदी मे स्नान को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदी मे स्नान दान से स्वस्थ्य रहने की मानसिक बृति को बल मिलता है। घरों की साफ सफाई के साथ सौर सपाटा करने के लिए भी उत्सुकता बनी रहती है। मन मे उल्लास का तरंग दौर जाता है। कार्य के प्रति भी अब उत्साह बनने लगता है। सर्दी तो घटने लगती है लेकिन हवा मे ठंढ़ बनी रहती है जिसके लिए खास तौर पर सावधान रहने की जरुरत होती है। बदलते मौसम मे रोग-ब्याधि की प्रवृति बढ़ जाती है। इसलिए भी साफ-सफाई के साथ खान पान का पुरा ख्याल रखना परता है। सुर्य की सुवह की धुप भी लाभकारी मानी जाती है जो शरीर मे विटामिन डी की मात्रा को बढ़ाती है। साथ-साथ कई तरह के रोग बनाने वाली किटाणु भी मर जाते है।
प्रकृति की इस अनमोल ब्यावस्था को उत्सव के रुप मे मनाने से हमारे मन मे जो बिचार बनता है उससे हमें एक सुन्दर सचनात्मक व्यवस्था बनाते हुए उल्लासित जीवन को जीने का नजरीया ही बदल जाता है। कार्य के प्रती रहने वाला उत्साह मे उतरत्तर बृद्धी हो जाती है। उत्साह का यह संदेश सभी तक पहुंच जाता है तदुनुसार लोगों मे एक व्यवस्था बन जाती है। जिससे समय के साथ होने वाले नुकसान से बजा जा सकता है।
मंगलिक कार्य की शुरुआत की सुगबुगाहट भी होने लगती है लोगों जो उत्साह का संचार हुआ है वह आगे बढ़ने लगता है जो आगे के उत्सव के लिएकएक मनोभाव को बनाने मे मदद करती है। भारतीय जनमानस मे यह पर्व कई नामों से अलग अलग भागों मे मनाई जाती है। लकिन यह प्राकृतिक परिवर्तन एक उत्सव का रुप लेकर जो व्यवहार और संस्कार को नव रुप प्रदान किया जाता है उससे वाकई हमारे समाज को एक नवीन जागृत का एहसास हो जाता है। इन्ही छोटे-छोटे उत्सव से भारतीय समाज के वौधिक क्षमता को निखारने का जो गुण हमारे पुर्वजों ने जो बनाया आज भी उसकी गहराई देखने को मिलती है।
गुणकारी भाव के श्रजन करने वाले मे एक अनोखी व्यवस्था देखने को मिलती है जो समय के साथ आगे बढ़ भी रही है। ओ इस रुप मे है बच्चो के स्नान करने मे आनाकानी करने के कारण उनको ये बात कही जाती थी की जो सबसे पहले स्नान करेगा उसको तील का लाई यानी तील के मिठे वस्तू खाने को मिलेगा। यह बात तो हमारे समझ मे भी नही आती थी जब हम छोटे थे। लेकिन जब हम बड़े हुए और हम अपने बच्चो
आज भले ही परिस्थिति बदल रही है हमे उसमे समय के साथ बदलाव की जरुरत हो सकती है पर मुल भावना को बनाने रखने से हमारे जीवन के जीने मे कलात्मक परिवर्तन आता है उसका आनन्द ही अलग है। तो आईये मकर संक्रांति के उत्सव को मनाते हुए प्राकृतिक के इस अनोखे परिव्रर्तन का आनन्द ले और एक दुसरे को उत्साहित करते हुए अपने विचार को आगे बढ़ात रहे।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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