07
Mar
निराशा की आग लॆख जीवन भी एक अजीव पहेली है। उम्मीदों का दामन थामे जब जिंदगी आगे बढ़ती रहती है तो फुर्सत कहां मिलता है कि इसके बिच किसी अनहोनी के बारे मे सोचें। आजकल का तो समय ही है कि अति क्षिण संभावना भी दिखे तो अपनी निगाहें जमाये रखो यानी सकारात्मक सोच को बनाये रखो। एक भौतिकतावादी मानव के मन के लिए यही सबसे बड़ी समस्या होती है कि उसे थोडी भी कष्ट की बात को सोचना पड़े तो वह अपना मुह मोड़ लेता है और जब अनहोनी होती है तो उसके लिए खुद को संभलना मुश्किल हो…