रक्षा

रक्षा बन्धन

रक्षा बन्धन

रक्षा बन्धन मानव का मन बड़ा ही चंचल होता है। वह उत्पन्न परिस्थिती को स्वतः ही भाफ लेता है। परिस्थती के साथ होने वाले समायोजन के परिणाम का अनुमान भी लगा लेता है। व्यक्ति के गुण के अनुरुप उसका एक भाव भंगीमा परिलक्षित होता है, जिसका लगातार परिस्थिती के साथ समायोजन चलता रहता है। सक्रिय व्यक्ति का अनुभव उसे जगाता रहता है। निष्क्रिय व्यक्ति का अस्थिर मन कमजोर होता है, जो चतुर व्यक्ति के मकर जाल मे ऐसा उलझ जाता है, कि बिना बाहरी सहायता के वह बाहर निकल ही नही सकता है। इसी उलझन से बाहर निकलने के लिए…
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