रक्षा बन्धन
मानव का मन बड़ा ही चंचल होता है। वह उत्पन्न परिस्थिती को स्वतः ही भाफ लेता है। परिस्थती के साथ होने वाले समायोजन के परिणाम का अनुमान भी लगा लेता है। व्यक्ति के गुण के अनुरुप उसका एक भाव भंगीमा परिलक्षित होता है। जिसका लगातार परिस्थिती के साथ समायोजन चलता रहता है। सक्रिय व्यक्ति का अनुभव उसे जगाता रहता है। निष्क्रिय व्यक्ति का अस्थिर मन कमजोर होता है, जो चतुर व्यक्ति के मकर जाल मे ऐसा उलझ जाता है, कि बिना बाहरी सहायता के वह बाहर निकल ही नही सकता है।
उसकी यह बिवषता उसके गुणात्मक पहलू के कारण होता है। जिसके कारण वह परिस्थिती से बाहर निकले के लिए जितना जोड़ लगाता है ,उतना ही वह उलझता चला जाता है। यह रक्षा सुत्र का बन्धन सहयोग के साथ बाहरी सहायता के रुप मे आता है। जब आत्मबिश्वास भी खतरे मे पर जाता है तब यह रक्षा सुत्र का संयोग के मकरजाल को काटकर व्यक्ति की स्वतंत्रता को बहाल कर देता है। प्यार का ये बन्धन एक धागे के साथ हमारे रिस्तो को बनाये रखता है।
यह बंधन लगातार हमे समायोजीत करते रहता है। हमें यह यहसास कराता रहता है कि हम एक दुसरे के मनोभाव को समझकर आगे बढ़े। एक दुसरे के साथ होने वाले मनोभाव का यही योग हमे सबलता प्रदान करता है। रिस्तो की नवीकरण के लिए इसे हर वर्ष मनाया जाता है। यदि किसी तरह का बिरोधाभास हो तो हम समय के साथ भी ठिक कर लेते है।
गुणात्मक सहयोग के इस बंधन को एक बार स्वीकार करने के बाद हमे हमारे दायित्व का एहसास होता रहता है। समाज मे एक माहौल बनता है जिेससे लोगो का आपसी जुड़ाव बढ़ता है। इस जुड़ाव के कारण समरसता का भाव आता है। मानव को प्रगतिशील बनाने के लिए यह एक जरुरी भाग है कि वह एक बेहतर बिकल्प खड़ा करे।
दायित्व निर्वाह का ये वंधन हमारे प्रगति को और बढ़ावे इसके लिए हमे इसके दायरे को बढ़ाना होगा। हमारे ज्ञान की तरलता को प्रवाहवान बनाये रखने के लिए हमे इस बंधन के दायरे को समझना होगा। प्राकृतिक संसाधन को सिमित होने के कारण इसकी सुरक्षा भी जरुरी है। इसलीए एक रक्षा सुत्र हमे इनसे भी बांधवाना चाहीये। जिससे की आने वाला हमारा आगला पिढ़ी ज्यादा खुशहाल रह सके। हमे धन्यवाद करें, कि हमने उनके अधिकार की रक्षा की।
मातृभूमि की रक्षा करना भी जरुरी है, जिससे की मानव के रहने के लायक यह धरती बनी रह सके। इसके लिए एक रक्षा सुत्र हमे इससे भी बन्धवाना चाहिये। हमें यह याद दिलाने के लिए की हमे इनकी कितनी जरुरत है। स्वार्थ के कारण जो हम कर रहे है, उसको रोकने का यह सुगम मार्ग है। यह रिस्ता कमजोर को ताकतवर के साथ जोड़कर एक दुसरे को समझने का मौका प्रदान करता है जिससे समाजिक समरसता का बिकाश होता है। यह मानव के सर्वागिंण बिकाश के लिए जरुरी है।
आजकल के भोगवादी समाज मे रिस्ते की कड़ी कमजोर होती जा रही है। वहीं यह रक्षा सुत्र एक उपयोगी कदम है। इस वंधन की गरीमा के साथ जो कहानी बनती है उससे हमारा मनोवल सुदृढ़ होता है। इसके सकारात्मक परिणाम को सहज ही समझा जा सकता है। कमजोर भी स्वयं को कभी निचे नही होने देता है इससे उसके आत्मबिश्वास मे जो दृढ़ता आता है वही उसके सबलता का कारण भी बनता है।
राष्ट्र के साथ हमारा व्यक्तिगत हित भी जुड़ा होता है। आजकल हम ऐसे कई उदाहरण देख चुके है जिसमे की हारने वाले राष्ट्र के लोगों को कितनी किमत चुकानी पड़ती है। यदि एक रक्षा सुत्र राष्ट्र के नाम का हम बान्धवाले तो हमारा अहित करने वालो को संदेश चला जायेगा, कि हम राष्ट्र के प्रती कितना सतर्क है। समय आने पर हम यह सावित करते भी रहे है, आगे भी यह प्रयास जारी रहे। यही हमारी कामना है।
आज रक्षा बंधन का ये महान पर्व हमे हमारी जिम्मेदारी को बढ़ाकर हमे सहज और सतर्क बनाता है। हमारे समाजिक दायित्वो के निर्वाह के साथ एक बैचारिक संबंध को गढ़ते हुए जो न्यायोचित व्यवहार किया जाता है वह हमारे संस्कृति को महानता के उँचाई तक ले जाता है। हमेशा नवाचार बना रहे इस कामना के साथ आप सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें। जय हिन्द।
आपके कोमैंट का इंतजार रहेगा, कि हम अपने प्रयास मे कहां तक सफल रहे। जय हो।
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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