अखण्ड जाप
यूँ तो जाप करना हमेशा से लाभकारी रहा है, लेकिन समय के साथ बदलती समाजिक परिवेश ने एक कोलाहल का माहौल बना दिया है। हमारा अस्थिर मन एक समस्या का हल निकालता है, कि वह दुसरे समस्या में उलझ जाता है। इसका बैधानिक कारण है, मन का स्वस्थ्य नहीं होना। हमारी चाहत तथा उसका समायोजन ही एक समस्या है। हम एक कार्य कर ही रहे है, कि दुसरे के प्रती हमारा ध्यानाकर्षण खिंच जाता है। हमारा नजरीया यहां भी बनने लगता है। इस तरह हम उलझते चले जाते है।
किसी एक कार्य में स्थिर रहना तथा उसके पुर्ण समायोजन तक दुसरे सभी कार्य को स्थगित रखना जरुरी है। एक कार्य जो अभी कार्य संपादन के लिए है उसका पुर्ण समायोजन के बाद ही हम दुसरे महत्वपुर्ण कार्य को अपने कार्य लिस्ट से चुनते है। यदि कार्य अति आवश्यक जान पड़े तो कार्य की सुचना को स्थिर स्तर तक जरुर रोक दें या सहायता लें या प्रबन्धन करे।
इस तरह की समस्या का समाधान निकालने के लिए हमारी जानकारी के साथ-साथ हमारा अभ्यास भी जरुरी है। इसका एक सामाधान अखण़्ड जाप हो सकता है। इसमे एक मंत्र का 24 घंटे तक जाप किया जाता है। कुछ समय अंतराल पर आप इसे दोहराते है। भाव के बनने, बदलने तथा क्रियांवित होकर उच्च स्तर तक पहुँचकर शारीर को आन्दित करने का महत्वपुर्ण संदश इसमे है। आपके साथ आपके बिचार को केन्द्रित करने के लिए सिद्धस्त जाप करने वाले भी रहते है। जिससे की आपको एक माहौल मिलता है।आपका मानसिक आभामंडल पॉजिटिव बिचारधारा के साथ मिलकर उर्जावान बनाती है, जो आपके समस्त शरीर में संचालित होती है।
आपको एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिससे की आपका मानसिक बिरोधाभासी बिचार लुप्त हो जाय। आपके एक भाव का को ही कार्यम्मुख किया जाता है। जब आपका शरीर तथा मन दोनो एकात्म होकर कार्य करता है, तब आपको सत्य का भान होता है। आपको मिथ्या जिवन तथा सत्य के शक्ति स्त्रोत का भान होता है।आप एक दुसरे से जुड़कर अपने को उर्जावान बनाये रखते है। उर्जा का बनना तथा नस्ट होना फिर बनना शरीर को एक स्त्रोत से जोड़ता है। जबकि व्यवहार मे हम कई स्त्रोत से जोड़कर अपने को रोगी बना लेते है।
मन की स्थिरता को एकात्म रुप बनाने का यह प्रक्रिया एक दिर्घ सोच से निकला युक्ति है। इसका सही व्याख्या साधक बनकर ही जाना जा सकता है।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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