तप और ज्ञान
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संयम से शारीरिक नियंत्रण को समझते हुए कठिन से कठिन भाव को समझने के लिए तप करना होता है। जिससे एक स्थाई विचार के साथ संस्कार का विकास हो जाता है। इससे ज्ञान को अर्जन करने में आसानी होती है। ज्ञानी होने से ही हमारे दुख का अंत होता है। क्योंकि कठिनाई में ज्ञान हमे अगला रास्ता दिखा देता है।
तप करने की प्रेरणा जगाना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि भौतिक जीवन के सुखद एहसास के पार जाना आसान नहीं है। जाकर भी संकल्प को पूरा करना और कठिन है। इसके बाद समाज कल्याण करते हुए लोगो के प्रेरणाश्रोत बनाना और कठिन है।
हमे एक व्यवस्था में जीना होता है जिससे की हमारी संकल्प शक्ति का संवर्धन होता रहे और हमे अपने मार्ग में जीने के प्रति विश्वास को शक्ति मिलती रहे।
सुख के साधन अनेक है चुन लो ध्यान लगाए। प्रभु तो अंत में खड़े है वहां कौन तक जाए।। पहुंचे भक्त, भक्ति की दरिया में डूबे, स्वयं में मस्त है। भौतिक जीवन को हम जी रहे एक दूसरे को देखकर अभावग्रस्त है।
हमारी विचार शक्ति ही हमारे विकास को आगे बढ़ाएगा जब हम ऊर्जावान बनाते हुए जीवन को नियमबद्ध करेंगे। प्रयोगात्मक ताकत हमारे ज्ञान को उत्तरोत्तर विकास को बढाते रहता है। यही सशक्त विधा तप और ज्ञान को आधार का निर्माण करता है।
लेखक एवं प्रेषक :: अमर नाथ साहू
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