करवा चौथ
करवा चौथ पुजन विधीः- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थो को ब्रती दिनभर का निर्जला ब्रत रखती है। रात्री मे चन्द्रोदय होने के बाद गणेश की पुजा की जाती है। ततपश्चात चांद्रदेव की पुजा की जाती है। चन्द्र देव को अर्ध्य भी दिया जाता है। फिर नयी चलनी के पास दिपक रखकर चांद के दिशा मे पति को देखा जाता है। इसके पश्चात पति पत्ति को जल पिलाकर उसके सुखद जिवन का संदेश देता है।
संदेशः- यह पर्व आपसी रिस्तो की गहराई को समझने और समझाने का पर्व है। प्यार से रिस्ते और रिस्ते से प्यार के महत्ता को एहसास करने का पर्व है। इससे जुड़ी हुई मान्यता हमे एक वंधन मे बांधती है, और हम एक दुसरे के करीब आते है। हमारे सांस्कृतिक व्यवहार मे जो समाज को सुदृढ़ करने के लिए व्यवहारीक नियम बनाये है। उसके साथ-2 उसके बियोग को दुर करने का उपाय भी स्थपित किये है। इसी से हमारी संस्कृति की महानता का पता चलता है। करवा चौथ का पर्व दो अनजान राही के एक बन्धन मे बन्धने के बाद एक दुसरे के प्रति वफादार और जिम्मेदार बने रहे इसकी तारतम्यता को स्थापित करता है।
आजकल के तनावपुर्ण माहौल मे व्यक्ति तुनुकमिजाजी हो गया है। यह पर्व इस तरह के बिचार को समाप्त कर देता है। पति को अपने भुखी पत्नी का ख्याल करना होता है। पति के हाथो पानी ग्रहन करने का ये पर्व पति की जिम्मेदारी तथा पत्नी के स्वावलंबन दोनो को जोड़ता है। जिवन यापन के दौरान व्यवहारिक संक्रिया से होने वाले बिलगाव को एकात्म करने का ये पर्व परिवार से शुरु होकर एक शसक्त समाज के निर्माण की प्रक्रया को स्थपित करता है। रिस्तो को शुद्ध करने तथा रिस्तो की महत्ता को समझने के साथ-2 पारस्परिक भेदभाव को मिटाने मे भी यह पर्व बड़ी भुमीका निभा रहा है। पर्व मे देव शक्ति को सर्वोच्यता प्रदान की गई है, जिससे इस पर्व की महत्ता बढ़ जाती है। इसलिए यह पर्व सामाजिक, परिवारीक, आर्थिक तथा व्यहारीक सभी रुपों से महत्वपर्ण है। मै सुर्यदेव तथा चन्द्रदेव दोनो से आग्रह करता हुँ कि ब्रत करने वाले तथा ब्रत के प्रर्थी सभी की मनोरथ पुर्ण हो। आपका यशोगान फैले तथा सबको आपका आशिर्वाद प्राप्त हो। जय करवा चौथ।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु