ओमेंस डे स्पेशल

ओमेंस डे स्पेशल

ओमेंस डे स्पेशल

ओमेंस डे को नारी के उत्थान के लिए किये गये कार्यो की समीक्षा तथा भविश्य के कार्य के लिए भावी योजना के निर्माण हेतु मनाया जाता है। यह दिन बिशेष रुप से नारी को समर्पित है। नारी के बिभिन्न रुप से हम सब अवगत है। उसको समाज मे सम्मान मिले जिससे आने वाली पीढ़ी का मनोबल ऊचाँ रहे। बच्चो की प्राथमिक पाठशाला परिवार ही होता है, इसलीए नारी के सम्मान से ही नवीन समाज के उत्थान की नीव पड़ेगी। उसके उत्थान की जब चर्चा चलती है, तब हम अपनी पराकाष्ठा को बिच मे रखकर उसका बिकाश खोजते है। यही से नारी की समस्या बनने लगती है। उनको अवला और सबला दोनो रुप मे समाज मे होने पर मजबुर होना पड़ता है।

बिभिन्न परीस्थिति का सामना करता हुआ जब मानव अपने पुरी पराकाष्ठा पर आरोहन कर रहा होता है, तब हम उसके बिभिन्न स्वरुप का बिस्तार से बर्णन करके उसके सम्पुर्ण बिकाश की कहानी को समाज के बिच रखते है। उसकी यही सीमा उनके सम्पुर्ण बिकाश की गाथा को कहता है। नारी पर अधिकार तथा नारी के अधिकार दोनो की सीमा को निर्धारित करते हुए हम इस कदर उलझ जाते है, कि हमारी व्यथा हमे ही सुननी पड़ने लगती है। एक स्वस्थ्य समाज मे नारी को एक बिकाश की इकाई के रुप मे देखा जाता है। जिससे परिवार का आंतरिक वातावरण नियंत्रित रहता है। लेकिन जहां लोग स्वयं से नियंत्रित होते है, वहां का माहौल कुछ और होता है। समाज मे स्थापित परंपरा हमे जीवन निर्वाह का रास्ता तो दिखाता ही है साथ ही उसकी दशा तथा दिशा दोनो को निर्देशित करने का गुड़ भी सिखलाता है।

नारी स्वयं के बिकाश के लिए ही समस्या बन जाती है, जब उसकी भूमिका परिवारिक होकर रह जाती है। इसलीए उसकी सोच समग्र न होकर परिवारिक लाभ हानी तक सिमित रह जाती है। आज जब समाज मे बिषमता के दौर का परवान पर है, तब नारी घर से बाहर निकलकर परिस्थिति का मुकाबला कर रही है। जिससे एक नवीन बिचार समाज मे चल रहा है। एक नारी को अबला समझने वाले को जबाव देना पर रहा है। उसको समझने वाले का भी संगठन बनने लगा है जिससे समाज मे उसके प्रती चेतना का विकाश हो रहा है।

बढ़ती बाजार प्रतिस्पर्धा के बिच समाजिक समिकरण का तेजी से बिस्तार हुआ है इसमे नारी की भुमिका बढ़ती जा रही है। नारी अपने मृदुल व्यहार के कारण सराही जा रही है। तनाव के इस दौर मे सम्मान के दो शब्द को सालिनता से रखना भी एक कला है जो नारी के व्यवहार मे झलकता है। लेकिन नारी को घरेलु कार्य को करने के लिए आज भी समाज नारी के तरफ देखता है जिससे उसको दोहरे मानडंड का सामना करना पड़ता है। पुरुष प्रधान समाज के अवधारणा अव बदलने लगी है। जहां नारी स्वयं ही प्रधान भुमीका मे है वहां के कार्य के तनाव का लेभल कम रहता है। नारी मे सहन शक्ति पुरुष के अपेक्षा ज्यादा होती है आज उसके इस गुण को समग्र रुप से सराहा जा रहा है। समाजिक पार्शपरिक सहयोग मे नारी का स्थान उँचा रहता है।

हे मानव तु स्वयं मुल्यवान बस्तु नही है। तुम्हे मुल्यवान बनाता है तुम्हारा समाज के प्रती समर्पण। इसलीए तु आज ही समाज के प्रती अपनी निष्ठा की परिभाषा बदल दे और समाज के उत्थान मे लग जा। यहीं से तेरा कल्याण संभव होगा। जब तेरा कल्याण होगा तो समाज और राष्ट्र दोनो का समग्र उत्थान होगा। तु गौरवान्वित होकर जब जीवन को महसुस करेगा तो ये जीवन तुझे वह दिखाई देगा जिससे तुम्हारा जीवन धन्य हो जायेगा। बढ़ती चुनौती और बदलते परिस्थिती में तु स्थीर रहकर अपने बिश्वास की डोर को थामे आगे बढ़ता जा। तु इस गलत फहमी मे न रहो की स्थापित परंपरा के अनुरुप तुम्हारा जीवन शसक्त नहीं हुआ। तुम के विकाश के क्रम मे आगे चल रहे हो। तुम्हे ही समय तथा परिस्थिती के अनुरुप एक उन्नत व्यवस्था को स्थापित करना है। तुम्हारा स्वस्थ्य प्राकृतिक व्यवहार तुम्हारे यथेष्ट बना देगा।

पस्तुत कविता नारी को स्वयं से लड़कर आगे निकलने की ओर प्रेरित करता है। जिससे बिकाशोन्मुखी समाज की आधारशिला का सुत्रधार हो सके। जय हिन्द

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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

  1. अतिथि आये हमारे जीवन प्रवाह के अतिथि के व्यहार तथा बिचार के संप्रेषक को दर्शाता है। हमारे बिचार की शक्ति ही हमारे स्वर्णम भविश्य को दर्शाता है।
  2. बधाई हो बधाई को कहता ये काव्य लेख हमे भाव पुर्ण अभिव्यक्ति को समय के साथ रखने को कहता है जिससे की माहौल मे रंग आ जाये।
  3. नफरत का फल जीवन मे एक कटु अनुभव का अंश होता है जो जीवन को एक अर्थ देता है। काव्य लेख को जरुर देखे।
  4. सिन्दुर को महीला के सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसके भाव को दर्शाता यह काव्य लेख देखे।
By sneha

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