कृष्णाष्टमी
कृष्ण के जन्म को भारतीय समाज के द्वारा युग प्रवर्तक के रुप मे देखा जाता है। जब दुष्टो का शासन पुर्णता पर हो और सारे जतन निष्क्रिय साबित हो जाये, तब एक ऐसे व्यक्ति का जन्म स्वर्णिम हो जाता है, जो इस दुष्टो का नाश करे। एक दोस्त का बिश्वास और दुसरे का बिश्वासघात, उसपर निराशा और हताशा के साथ बना संयोग कृष्ण के जीवन को दर्पण की भांती प्रकाशित कर दिया।
जीवन मुल्य को निर्धारित करने, स्वयं की पराकाष्टा को बनाने तथा समय के अनुरुप सही निर्णय उनके जीवन मे मिलता है। कृष्ण की गाथा धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक पटल पर भी खुब चरितार्थ होती है।
कृष्ण का काल चरासंध के बिजयी सनक तथा कंश के अमानविये व्यवहार के किले की तोड़ने तक सिमित नही है। वे मानव मे व्याप्त सहिष्नुता को बनाये में सफल होते है। महाभारत के द्वारा कृष्ण ने रिस्तो तथा स्वार्थ की परिभाषा को भारतीये समाज मे खोलकर रख दिया। एक नीति का साहित्य जो उन्होने पढ़ाया वह आज भी प्रासंगिक है।
मानव मुल्यों को तलासता कृष्ण का प्रयास कितना सफल रहा इसपर हमारा समाज आज भी बिचार कर रहा है। व्यक्ति बाहरी दुश्मनों को आसानी से समझ लेता है। लेकिन अंदर के दुश्मन को कैसे समझे उसका उपाय कृष्ण के द्वार, से ही निकलता है। अंदर की कार्य उर्जा का विस्तार तथा आत्मा के शक्तिशाली करने का आलौकिक सत्य कृष्ण से ही निकलकर जनमानस मे आता है। जो आज भी हमें जागृत करता है।
कृष्ण की खोजी मानसिकता ने ही उसे भगवान बना दिया उन्होने तर्क के साथ उसका समायोजन को भी अपना हथियार बनाया। व्यक्ति को विभिन्न आयामो से जॉचना तथा उसके लिए उचित व्यवस्था बनाना जिससे की वह अपनी आत्मवोध कर सके और सफलता के सोपान को पा सके। इस प्रयोग को जनमानस के सामने रखा।
भगवान कृष्ण की यात्रा समाजिक न्याय के साथ राजनीतिक बिवेक की बिवेचना की भी रही है। हमारे समझ को कोई धात नही लगे इसलिए भगवान मे आत्मा के भाव को जागृत करके बर्तमान जीवन की अभिलाषा का अंत कर दिया तथा स्वयं के साथ न्याय को प्राथमिकता दी। आज हमारे बिच रहकर हमे ही नष्ट करने वाली मानसिकता के लोग है जिससे कृष्ण के बिचार से ही लढ़ा जा सकता है।
हे मानव भगवान कृष्ण जो हमें समझा गये उसे नियमित जीवन मे भी लाना है, जिससे की मानव अपने सर्वोच्य उत्कर्ष को पा सके। कृष्ण की सच्ची भक्ती भी यही है। हे कृष्ण, आज मैं निष्चय करता हुँ कि स्वयं के सहित हम अपने राष्ट्र को भी सर्वाच्चता प्रदान करेंगे। इसके लिए हर जरुरी प्रयास करने का संकल्प लेता हुँ। आपने कहा की प्रयास करना हमारा नियति होना चाहिए। निष्कर्ष पर बिवादित बिचार रखना स्वयं के प्रयास को खत्म कर देता है। इसलिए हमारा कार्यन्मुख बिचार सबके लिए एकात्म बने ये कोशिश जारी रहेगा। जय कृष्ण जन्माष्टमी।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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