नफरत का फल
नफरत व्यक्ति को अंधा बना देता है, व्यक्ति की मानसिक स्थिति पुरी तरह बदल जाती है। वह अपनी बैचारिक सिमा के बाहर नही जा पाता है। उस सिमा के बाहर जाकर सोचना उसके लिए अत्यंत दुखद होता है। दुख के इस बंधन के पार जाकर सोचना तथा उसका निदान निकालना नही चाहता है क्योकि बह अपनी बर्तमान सोच को ही अंतिम सोच मान लेता है। व्यक्ति कभी पुरा घटना चक्र को अनजान बनकर नही सोचता है, बल्कि बह उसका हिस्सा बनकर रह जाता है। आनेवाली समस्या के जानकर होने के बाबजुद बह अपनी सही हल नही निकाल पाता है। बह चाहता है कि वह पल अपनी जिंदगी से बाहर निकाल दे। अपनी भावना की प्रवलता का शिखर इतना ऊँचा कर लेता की आगे की सोच गलत लगता है।
प्रस्तुत कविता मे इस तथ्य का पुरा चित्रन किया गया है। पुरा कविता सार गर्भित है जिसमे पाठक को पुरा जिवन चित्रन मिलेगा। वह यह सोचने की कोशीश करेगा की इस तरह के हालात यदी उत्पन्न हो जाये तो वह क्या निर्णय लेगा। सामान्य सोच व्यक्ति को नफरत के फल का बिजारोपन करेगा तथा उसका परिणाम उसे वही मिलेगा जो प्रस्तुत कविता मे कहा गया है। यदि वह इससे अलग सोच रखेगा तो एक सम्यक बिचार के साथ उसका कल्यान होगा। यह चोतना के जागृत करने वाला कविता आजकल के जिवन को सचित्र रेखांकन करेगा।
कविता पाठ करना के बिचार का चलन आजकल कम गया है जिससे लोगो मे मानसिक अवसाद ग्रस्त रहने के प्रबृती बनने लगी है। लोगो मे इतना गुस्सा स्वयं के प्रति भी होने लगा है जिसका कारण उसका स्थानिय सोच है जो उसको बास्तविक लक्ष्य से भटका देता है। हमारा प्रयास है कि आप कविता पाठ करे जिससे की आपके अंदर की चोतना शक्ति का यथोचित विकाश हो सके । आपका बिश्वास आपका सबसे बड़ा हथियार है जो हर समय बने रहना चाहिए। विश्वास को तर्क के कसौटी पर कसा जाना चाहिए लेकिन हमे एकचित बिचार के साथ ऐसा करना गलत होगा। आपको खुले मन से करना होगा जिससे कि आप खुद के साथ न्याय कर सके।
मानव मन मे खुद के प्रती द्वेश पैदा होना भी एक समस्या बन जाता है जिससे बचने के लिए कविता मे मन के भावना के पक्षी के सहारे समझाने की कोशीश की गई है। पुरा कविता मे मन के भाव को उच्चश्रिख होने से रोकने की कोशीश है। आप खुद के साथ सही निर्णय कर सके इसका पुरा ख्याल रखा गया है।
‘नफरत का फल’, ‘नफरत हमारे एक ऐसा हथियार होता है जिसको बनाये रखने के लिए हमे लगातार मन मे बिचारधारा को चलाना पड़ता है तथा समय के घटना को फिल्टर पेपर की तरह छानना परता है तथा अपनी मानसिक बृति को संतोष देना होता है।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु