बिर्रो

बिर्रो

बिर्रो

उमंग उल्लास मे बितता जीवन जब एक नये दौर मे पहुँचता है, तो उसका सुखद एहसास गहरा तथा अति व्यक्तिगत होता है। इस नाजुकता को समझ पाना आसान नही है। इसका बर्णन तो काव्य रुप मे ही किया जा सकता है, जिससे की इसकी प्रखरता का अनुमान लगाया जा सके। आजकल बहुत कम लोग होते है, जो ऐसी उड़ान का आनन्द लेना पसंद करते है। अधिकांश लोग तो सोर सरावा मे इस तरह खो जाते है कि उनको वास्तविकता का एहसास ही नही होता है। वह लगतार ही यह खोजता रहता है कि आखिर इस छनिक एहसास का मुल कहां है। हमारा गराई से एहसास करना हमे एक शास्वत सुख को लम्बे समय तक आत्मसात कराता है।

   चाहत से प्यास का बनना, प्यास से प्यार के तरफ का झुकाव और यहां से आकर्षण का बिभिन्न रुप देखने को बनता है। अकर्षण के मर्मस्पर्षी लोग यह बहुत कह ही समझ पाते है कि इस नाजुकता को कैसे बिस्तारित किया जाय। इस समय मे एक छोटी सी बात भी बहुत बड़ी लगने लगती है। जल्दी कोई समाधान नही निकलता है यदि निकल भी जाये तो इसके स्थयित्व होने का सक बना रहता है। हर जबाब के पिछे कुछ बजह लगती है, क्योकी तन मन दोनो मे बास्तविक लक्ष्य का संयोग की कमी है। यही पल होता है टटस्थ होकर जीवन की गती को सवारने का।

हमारी ये उड़न परी कविता इस घटना को एक बिर्रो का नाम दिया है। बिर्रो एक तेज गति से धुमता हुआ वायु होता है जो गर्मी के मौसम मे बनता है और तेज रुप से आसमान के तरफ चला जाता है। यहां इसी घटना को दृष्टांत मानकर इस नाजुक यौवन के एहसास का बर्णन किया गया है। काव्य पाठ से व्यक्ति के अंदर एक प्रकाश बनता है जिसका बास्तविक रुप आपके जीवन को रौशन कर देता है। आप इसका आनन्द लेते रहे आपको हमारी ओर से बधाई।

जय हिन्द

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

By sneha

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