भाभी के साथ रंग
होली हिन्दुओ में आपसी भाईचारा को स्थापित होने के लिए मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध पर्व है जिससे आपसी बिद्वेश को कम करने के लिए एक दूसरे को उत्सहित किया जाता है। इससे एक पौराणिक कथा भी जुड़ा हुआ है। जिसमे होलिका का अंत हो जाता है तथा प्रहलाद को जीवन दान मिलता है। व्यवहारिक रुप मे होली आपसी भेदभाव को मिटाने का माध्यम है। रिस्ते में प्रगाढ़ता को बनाता देवर भाभी के रिस्ते का नोक-झोक देखते ही बनाता है। इसी भाव को व्यक्त करता यह काव्य रचना हमको आजकल के सामाजिक नजरीया के खुलापन के साथ आपसी विश्वास को व्यक्त करता हुआ दिखता है, जो रिस्ते को ज्यादा गहराई देता है। हमारा नियत नेक होना चाहिए, जिससे रिस्ते लम्बे समय तक सौहार्दपूर्ण माहौल मे फल-फूल सके।
विश्वास रिस्ते के गहराई को और गहरा बना देता है। यदि हमारे नियत मे कोई खोट हो तो वह छिप नही सकता है। समय के साथ इसका खुलासा हो ही जाती है जिससे आपसी दुरीयां बढ़ने लगती है। जिससे की होली के वास्तविक रुप का आभास नही होता है। होली को रंग मे भाभी के साथ होने वाली खिचतान हमारी आपसी रिस्ते को मजबुत करने वाला होना चाहिए। रिश्तों को समझने के लिए आपसी भाव के आदान प्रदान का यह सिलसिला सदियों पुरानी है और अपने मे पुरी भाव को समेटे हुए है।
होली हमारी संस्कृति को एक व्यवस्थित रूप में विन्यास करने के लिए मनाया जाने वाला अनोखा पर्व है। सामाजिक उत्थान को बढ़ावा देने के लिए व्यक्ति को समाज के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए एक दूसरे को गले लगाने हेतु इस पर्व को मनाया जाता है। सामाजिक समरसता को दर्शाता यह पर्व एक जरूरी उपाय है। इसी भाव को निरुपित करता यह लेख आपको पसंद आयेगा।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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