राजनिति सामाजिक परिवर्तन का आईना होता है जिसमे हमे समाज की परिवर्तन की दिशा का ज्ञान होता है। गतिशिलता जीवन की धारा है जिससे हमारी आत्मा को शक्ति मिलती है वही पर स्थिरता हमारा स्वभाव है जिसमे शरीर को आनन्द मिलता है। इस दोनो भाव को समस्त रुप को एक साथ क्रियांवित होते हुए यहां हम देख सकते है।
सुशासन की बात तब होती है जब समाज मे स्थिरता की स्थिति बिगड़ जाती है। इसके बिगड़ने का कारण हमारा स्वार्थ पुर्ण व्यहार होता है, जिससे समाज मे ध्रवीकरण को बल मिलता है। भाव पुर्ण बिरोध बिकाश को प्रदर्शित करती है वही पर विद्वेशपुर्ण बिरोध बिवाद को जन्म देता है। जिससे समाजिक समरसता का भाव बिगरने लगता है।
सुशासन से हमारा तातपर्य होता है समग्र बिकाश, जिसमे हम अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति को उसके अनुरुप व्यवस्था करते है जिससे की समाज मे गुणता बनी रहे। सुशासन से ही राष्ट्र का बास्तविक विकाश संभव है जिसमे हर तरह से लोग अपना योगदान देते है। नये बिचार को स्थान मिलता है तथा पुराने बिचार का परिवर्धन होता रहता है। हमे उर्जावान बनाने के लिए हमारे अंदर एक सशक्त बिचार की जरुरत होती है जो हमारे व्यवस्था से ही आता है। हमें कुंठा से बचाता है।
बिहार मे जो परिवर्तन को दौर चला वह उस समय की आवाज बनकर राज्य को आगे बढाया लेकिन आगे निकलने की होर मे कमजोर लोगो को उसका उचित स्थान नही मिला जिससे की बिषमता फिर चरम पर पहुँच गया। जिसको फिर एक आवाज देने के लिए एक नये बिचाधारा के लोगो का आगमन हुआ। इन्ही मे से एक नाम सुशासन बावू का आया।
समय के साथ राजनिति के परिवर्तन को स्थान मिलना चाहिए जिससे की राज्य को नई चेतना मिले लेकिन यही नही हुआ। फलतः फिर विषमता परवान चढने लगी। इसी भाव को दर्शाता यह काव्य लेख हमे एक चित्र प्रस्तुत करता है। हमे यह कहता है कि राजनिति के अग्रीम धारा मे बने रहने के लिए हमे स्वयं के साथ न्यायोचित व्यवहार की कामना को रखते हुए आगे बढ़ना होगा। अपने बिचार को एक दुसरे तक पहुँचाकर अपने व्यवहार मे संतुलन लाकर सामाज को जगाना होगा और नये समाज की निर्माण की ओर अग्रसर होना होगा।
व्यक्ति के बिचार से समाज बदलेगा, समाज से राज्य और राज्य से राष्ट्र। बिचार का सशक्त स्त्रोत हमारा प्राकृति है जिससे इस नित का नियोजन होता है। यही हमारे संयुक्ति और मुक्ति दोनो को स्थान प्रदान करता है। जय हो
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लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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