नैतिक विकास के लिए हमें सतत प्रयास की जरूरत होती है। हमे अपने लिए एक व्यवस्था विकसित करनी होती है। जिसका अभ्यस्त होना होता है तथा समय के साथ नवीन विचार से भी खुद को जोड़ना होता है। फिर विकाश की प्रक्रिया समय से साथ चलने लगती है।
संकल्प शक्ति का प्रयोग करते हुए बेहतर प्रवंधन के सहारे ही हम विकास की धारा को बनाये रख सकते है। खुद पे बिश्वास होना भी वहुत जरुरी होता है इसके लिए हर जरुरी तथ्य को जोड़कर आगे ले जाना होता है। उच्च कार्य उर्जा वाले के लिए कार्य को करना आसान होता है। हर कार्य के लिए उर्जा का खर्च होने के लिए मन मे उत्साह का होना भी जरुरी है यही उत्साह हमे सक्रिय रखता है। जिसमे उत्साह नही होता है, उसके विकाश की धारा रुक जाती है।
स्वभाव के अनुरुप किया जाने वाला कार्य हमे सबलता प्रदान करता है क्योकी इसको समझना आसान होता हौ जो हमे कार्य से आनन्द भी देता है। जिसको की हम नैतिक विकास से जोड़ते है। यानी सही विकास के लिए हमे हमारी सोच को भी सही होना चाहिए। नाकारात्मकता का होना हमारी कार्य के प्रती निष्ठा का नही होना होता है। क्योकि हमारी सिथिलता हमे आगे बढने से रोकती है।
स्वयं को मानसिक पटल पर मजबुत बनाने के लिए आप नियमित रुप से साधना को अपनाये ये वो गुण है जो आपको बिपरीत परिस्थिती मे स्थिर रहने मे मदद करता है। कार्य से समबन्धित बिचार के प्रती जागरुक होना भी जरुरी ङै। तो नैतिक बिकस की प्रक्रिया के लिए आगे आयें और अपनी खुशी को बढायें।
लेेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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