पल दो पल

पल दो पल

खुशियों को पाने के लिए हम लोग लगातार प्रयासरत रहते है, जीवन के जिद्देजहद से बाहर निकलने की हमारी लगातार कोशिश का एक पड़ाव दोस्ती आता है जिसमे हमारी भावनाए अपने चरम स्तर पर होती है। हम खुल के वातचीत करते है जिससे हमारी आंतरीक विचार को प्रवलता मिलती है। हमारी कमजोरी को समझने तथा उसे दुर करने का सुगम मार्ग को ढ़ुढ़ने का तरीका भी मिल सकता है। हमारा उल्लासित मन हमें सतत विकास की ओर उन्नमुख रहने के लिए उत्साहित रहता है।

पल दो पल से हमारा तातपर्य दोस्ती के भाव पुर्ण संवाद से है जो हमारे प्रकृति के अनुरुप ही हमारे बिचार को सबलता प्रदान करता है जिसमे हम खुद के प्रतिविम्ब की प्रकृति देखते है। दोस्त का चुनाव करते समय हमे यह ख्याल रखना होता है कि हमारे दोस्ती का आधार क्या है। दोस्ती के आधार पर ही हमारे बिचार के आदान-प्रदान का मुल्यांकन होता है। इसका स्तर निःस्वार्थ होना चाहिए जिससे की भाव की प्रवलता बनी रहे और दोस्ती के बल पर उच्चाहोरण की भावना को प्रवलता मिलती रहे। आपसी सहयोग कई तरह से हो सकता है लेकिन हमेशा समानजस्य की भावना होनी चाहिए जिससे की समय के साथ गुणकारी व्यवहार की गुणता का विकास हो।

दोस्त तो यात्रा के समय भी बनते है पर इसकी स्तर तलकालिक होता है। लेकिन पल दो पल के लिए हम एकात्म भाव के साथ समाहित हो जाते है। अपनी समस्या का हल ढ़ुढ़ने लगते है। लेकिन कुछ लोग स्वयं मे संतुष्ट होते है जिससे की उनका व्यवहार प्रेरक होता है और वह आपको सतर्कता के साथ आगे बढ़ना सिखाता है, जो पल दो पल के लिए वड़ा ही उपयुक्त होता है।

पल दो पल मे जो हम सीख सकते है वह कभी हमे जीवन भर मे नही मिलता है। इसकी यादें इतनी प्रवल होती है कि हमे समय-समय पर सावधान भी करते रहता है। आजकल के भाग-दौर की जीन्दगी मे प्रमाणिकता की गारेंटी नही है फिर भी हमलोग दोस्त बनाते है। जिसका हमे कभी-कभी भारी नुकशान भी उठाना परता है। जबतक की बनने वाले दोस्त के वारे मे पुरी तरह से संतुष्ट न हो लें अपने वारे मे कुछ भी शेयर करना खतरनाक होता है। चेहरा पढ़ने वाले तो हमारे बारे मे वहुत कुछ अंदाज लगा सकते है और फिर दिस्ती के नाम से हमारा लगत उपयोग कर सकते है इसके लिए दोस्त की समायोजन की सीमा जानना जरुरी होता है। उसको क्या पसंद ओौर क्या नासंद है कहां तक इसके सहयोग की भावना है इन बातें का तो ख्याल रखना ही परता है। हमारे प्रकृति के साथ समानता का होना भी जरुरी है जिससे की भाव की प्रवलता बनी रहे।

रामायण काल मे जब रावण के भाई विभिषण ने भगवान रामचन्द जी से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए आकाश मार्ग से पहुँचे तो बड़ा ही असमंजस की स्थिती पैदा हो गयी। यह की सामने वाला दोस्ती के लायक है या नही या यह जासुस है। इस पर हनुमान जी आज्ञा लेकर बोले की भगवन जब व्यक्ति सामने आता है तो उसकी प्रकृति परिलक्षित होने लगाता है तब तो ये अंदाज लगाया जा सकता है कि सामने वाले के साथ क्या व्यहार हो सकता है। इसके बाद दोस्ती के रास्ते आसान हो गये।

समय और परिस्थिती हमें बहुत कुछ सिखला देता है ये भी कहा जाता है कि दुश्मन-दुश्मन दोस्त होता है और ये बड़ी रणनिती बनाकर हमारा नुकसान पहुँचा सकता है इसलिए नजर को पैनी रखनी परती है उसमे तब-जब समय बिपरित चल रहा होता है। यथार्तः हमे जीवन के चुनौती का सामना करने के लिए आगे बढ़ते हुए बहुआयामी मानडंड को आपनाने का बिचार यदी रखना हो तो दोस्ती को सबसे उपर रखना चाहिए और अपने गुणकारी प्रभुत्व के बल से हर कदम आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह हिन्द।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

संवंधित लेख को जरुर पढ़ेः-

  • दोस्ती का दर्पण जीवन में होने वाले सार्थक परिवर्तन को परिलक्षित करता है और भविष्य के लिए द्वार खोलता है आगे …
  • दो हाथ यदि हो साथ तो मुस्किल में भी लड़ने की हौसला होती है पास।
  • सम्मान का दर्द जीवन उत्कर्ष को पाने वाले के लिए वड़ा कठीन होता है, इस समय से पार जाने के लिए कुछ सिखना होता है।
  • आशा की किरण जीवन मे सही दिशा मे आगे बढ़ने के लिए यह एक संयोग के रुप मे सामने आता है।
By sneha

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