बिंदास पल

बिंदास पल ,

बिंदास पल

मन बड़ा ही चंचल और स्वछंद होता है। वह हमारे आसपास घटित होने वाली घटना के अत्यंत बारीक बदलाव से भी प्रभावित हो जाता है। उस भाव को आत्मसात करना या छोड़ना हमारे वर्तमान परिस्थिती के हमारे अनुवंध पर निर्भर करता है। लगातार हो रही इस प्रकार की घटना से हमारे अंदर एक नाकारात्मक बिचार की द्वंध बढ़ने लगता है जिसके कारण हमारे निर्णय की शक्ति प्रभावित होने लगती है और तनाव के शुरुआती भाव हमारे ऊपर दिखने लगता है। इस भाव से निजात पाने के लिए हमें एक युक्ती से गुजरना होता है जिसके बाद हमारे भाव को एक सकारात्मक गति मिलने लगती है। इसी युक्ति का नाम है विंदास पल।

  यह एक ऐसा पल है जिसके समय हम स्वयं मन के बस मे हो जाते है और स्वयं को एक नवीन व्यवस्था का हिस्सा बना लेते है। जिससे हमारे अंदर पैदा होने वाला द्वंध व्यवस्था से स्वतः अनुकूलित होकर परिशुद्ध हो जाता है। हम अपने विचार के साथ स्वतंत्रता का एहसास करते हुए निकल परते है जहां की मंजिल कुछ नही है बस सोचा और कर बैठे। कार्य की पुर्णता का एहसास हमे गुदगुदाता है  क्योकि इसका मुल्यांकन तो हमने किया ही नही था। बस कार्य की गति को वर्तमान उर्जा और समय के साथा निवंधित करते हुए आगे निकल लिए। इऩ पलों से हमारे जीवन मे नाकारात्मक बिचार की स्थिरता नही रहती है साथ ही हमे समय के साथ आगे बढ़ने मे काफी मदद मिलती है।

   इन पल के चुनाव की कार्यविधी का अपना ही एक गणित होता है जिसमे हम ज्यादा सुकून और आराम महसुस करते है साथ ही ज्ञानवर्धक वातें स्वतः स्फुर्त गति से कब हमारे सोच का हिस्सा बन जाता है हमे पता ही नही चलता है। कहते है हमारा शरीर एक अद्वीतीय यंत्र है जिसका वास्तविक संचालन यदि प्रकृति के धारा के साथ होता है तो वह स्वयं को अनुकुलित और व्यवस्थित होकर उर्जावान बन जाता है और यही हमारे बिकास की वास्विकता के साथ आगे बढ़ने का ध्योतक बनता है।

 आईये हमलोग अपने बिंदास पल को संचालन करते हुए एक नये सुत्र को प्रतिपादित करें और विकास की बहती धारा मे खुद को सबसे आगे लाकर रखें। विकास के मानडंड की गहराई मे डुबते हुए हमे एकात्म भाव के साथ एक दिशा मे जाना होता है। जहां हमारी रचनात्मक व्यवस्था का ज्ञान ही हमारे लिए पारितोषिक होता है। जिसके सही व्यवस्था के साथ हम एक बिशिष्ट कार्य का संपादन कर सकते है। विंदास के पल, पाकृति के इन्ही योजपुर्ण व्यवस्था को समझने का एक मौका प्रदान करता है।

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

  • सम्मान का दर्द वड़ा ही गहरा होता है जो जीवन मे आगे बढ़ने के लिए हमें सशक्त करता है।
  • विंदास भोला खुद को समय के साथ चलने की कोशीश करता है लेकिन मुश्किल धड़ी का मुकाबला पुरी तकत से करते है।
  • यात्रा की दर्दनाक यादों को समेटता यह रचना हमे सतर्क रहने के लिये प्रेरित करता।
  • जीवन के पार चलो की यात्रा को गहराई से समझना होगा जिससे हम अपने वर्तमान के साथ न्याय कर सके।
By sneha

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