Bali aur Sugriv

सुग्रीव बाली गृह स्थल

रामायण कालीन समय की गाथा हमारे जनमानस मे बड़ा ही गहरा स्थान पा चुका है। हमारे रहन-सहन से लेकर हमारी पुजा-पाठ तक की बिचारधारा को इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। इसके वास्तविक होने के प्रमाण दिये जाते रहे है। यदि ऐसा सुनहरा जगह मिल जाय जिससे की इस कथानक के किरदार के बारे मे जानकारी हो तो मन मे उतावलापन तो देखने को मिलता ही है। ऐसे ही एक वाक्या बाली-सुग्रीव के बारे मे कही जाती है।

बाली-सुग्रीव के रामायण कालीन समय के गृह स्थल को देखने का मौका मिला। पता चला की ये जगह दुर्गम जगहों मे स्थित है। यहां का इलाका पुरी तरह से पथरीली है। आवागमन के रास्ते सकरी है तथा वहुत कम गाड़ी अपने गणतब्य सथान तक जाती है। हमलोगो ने एक ऐसे गाड़ी को रिजर्व किया जिसके चालक को रास्ते का पुरा ज्ञान था। हमलोग सुवह ही तैयार होकर अपनी मंजील की ओर रवाना हो गये। हमलोगों की गाड़ी अपने गणत्वय स्थान की ओर तेजी से निकलती जा रही थी। जैसी ही हमलोगों की गाड़ी शहर के भागमभाग से दुर हुई हमलोगोंं को पहरी जगह की अनुठी व्यवस्था ने अपनी ओर ध्यान खींच लिया।

पत्थरों की चमकती सिला से बनी पहरा अपनी अनुठी पहचान बना रहा था। आसपास के हरीयाली के बीच बने ये उंचे पहार बड़े ही मनभावन लग रहे थे। आगे निकलती गाड़ी ने एक धने जंगल को पार किया। यहां के लम्बे-लम्बे बृक्ष और सधन झाड़ी डर तो बना रही थी लेकिन गाड़ी के आवागमन ने हमारी भ्रम को दुर कर दिया क्योकि बदलते परिवेश ने यहां की आवोहवा बदल दी थी। कुछ दुर निकलने के बाद अब हमलोग सड़क किनारे बसे गांव के बस्ती को देख रहे थे। इन्ही बिचारों के बीच नदी नालो ने हमारी ध्यान को बांट दिया यहां पानी की धार तेज थी जो पहारी ईलाको के अनुरुप पानी तेजी से निकलती जी रही थी। अब हमलोगों का मंजिल नजदिक था। हमारी जिज्ञासा अब अक आकार ले रही थी की शायद इन्ही तरह की पहारी मे हमलोगो को कुछ देखने को मिले।

पहारों के बड़े-बड़े पत्थरों के बीच बने छोटे-छोटे जगह जो सुरक्षित और पाकृतिक आवास के रुप मे वेहद अहम मालूम पर रहे थे। वहां पर जानकारी भी अंकित की गई थी। पता चाला की बाली अपने परीवार के साथ यहीं पर निवास करते थे। बाली का पुरा सम्राज्य यही पर अपस्थित था। बाली अपने सेना मे सबसे शक्तिसाली योद्धा था जिससे वहां के निवासी सुरक्षित महसुस करते थे। इन पहारी के पत्थरों मे कुछ छिद्र भी देखे गये थे जो बड़े ही बारीकी के साथ बनाया गया था। हमने अनुमान लगाया की इसके निचे भी आवास हो सकता है। जिसकी जानकारी नही थी। हमलोगों ने आसपास की कई जगहों को देखा जहां पाकृतिक आवास के रुप मे रामायण कालीन समय मे उपयोग किया गया था।यहां की खुबसुरती देखते बनती थी। हलांकी यहां पर जाने के लिए समुचित व्यवस्था की गई थी जिससे की हमलगों को यहां तक पहुचने मे सहुलियत हुई।

पत्थरो से बनी गुफानुमा संरचना के अंदर पानी के बहने से बहां की हवा मे ठंढ़क थी जिससे की यहां पर बैठना अच्छा लग रहा था। यहां पर पानी खुद से पहार से बाहर निकल रहा था जिसके लोगों के द्वारा पीने के पानी के रुप मे उपयोग किया जा रहा था। एक जगह तो पानी को पाईप के जरीये दुर ले जाने की भी व्यवस्था दिखी। दुर पहार पर चढ़ने के बाद यहां से नीचे के इलाके जो दुर तक समतल दिखाीई पर रही थी हरीयाली से भरी परी थी तो कहीं दुर पर कुछ उंंचे पहार नजर आ रहे थे। हमलोगो ने कुछ देर तक यहां वर्णछटा का आनन्द लिया। ऐसा महसुस हो रहा था मानो हमलोगो को थकाबट दुर हो गई है।

गुजरते समय के साथ अब भोजन के समय भी गुजर रहा था तो हमलोगों ने अब यात्रा को बिराम देने की ओर सोच रहे थे लेकिन यहां से कुछ यादों के पलो को अपने कैमरे मे कैद करना अच्छा समझा। यहां पर के कुछ नामचीन जगह को यादगार पल के रुप मे कैद किया। हमलोग अब भोजन के बाद अपनी गाड़ी को से गणतव्य स्थान की ओर प्रस्थान कर गये।

जो जानकारी हमे दुसरों से प्राप्त होती है उसका दृश्यगत भाव जो हमारे मन मे बनता है वह हमारी व्यवहारीक पृष्ठभूमी से जुड़ी होती है जिसका अनुमानतम एहसास भी उसी के जैसा होता है। लेकिन जब हम वास्तविकता के साथ दो चार होते है हमारे अंदर एक कौतुहल को बिराम मिलता है तथा स्वयं को बर्तमान मे स्थापित करने को लेकर निश्चय की भावना का बिकास भी होता है। ऐसा ही भाव हमें उद्वेलित कर रहा था। पहले पाकृतिक आवास के रुप मे पत्थरों के बिच बने जगह की उपयोग की जाती थी उसका एक गहरी अनुभूती ने हमें ये सोचने की ओर अग्रसर किया कि आज मानव भलेही बहुत तरक्की कर ली हो लेकिन स्वयं को उत्कृस्ट जीव के रुप स्थापित करने को लेकर आज भी पिछे है। हमें आज यहां से जो प्रेरणा मिली उससे हमारे अंदर की चेतन शक्ती को कार्य उर्जा मिलती रहेगी।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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