खूंटी यात्रा

खूंटी यात्रा के महत्वपूर्ण तथ्य

हमारी खुंटी यात्रा

        यात्रा का अपना ही एक आनन्द होता है। एक पुरानी यादें ने हमारे बिचार को गति दी और हमलोग खुंटी की यात्रा का मन बना लिया। यात्रा को आसान बनाने के लिए हमलोगों ने रेलवे को चुना जो बस की यात्रा से ज्यादा आरामदायक लगा। हमलोग अपनी व्यवस्था के साथ रांची के लिए निकल लिये। रात्री यात्रा से गुजरते हुए सुवह का नजारा बड़ा ही अदभुत था। पहाड़ी ईलांको से गुजरता हमारी गारी धिरे-धिरे अरने मंजिल के तरफ बढ़ रही थी। ध्यान धड़ी पर भी था क्योकि जिस कार्य हेतु जा रहा था वहां समय से पहुँचना जरुरी था। हमलोगो के पास प्रयाप्त समय होने के बावजुद एक अनजान रास्ते का संसय बना हुआ था।

    पाकृतिक सुंदरता के आगे कृतिमता कहां ठहरता है। पहाड़ी वातारण ने हमारा ध्यान अपनी और खिंच लिया था। कहीं छोटे-छेटे झाड़ी का बिन्यास कहीं उँच-उँचे पहाड़ तक दिखती थी। क्या उँचे-उँचे पहाड़ क्या धाटी हर जगह हरीयाली का नजारा एक मनमोहक दृश्य था जो मन को आहलादित कर रहा था। चलती गाड़ी भागते दृश्य की कुछ तस्वीर हमने कैद की जिससे की यादों को समय के साथ जोडा जाय। हमारी रांची की यात्रा का अंतिम पड़ाव आने वाला था हमारी उत्सुकता चरम पर थी तभी एक बिचार ने हमे उद्वेलित कर दिया। हमलोग गाड़ी के अंतिम पड़ाव से खुंटी के यात्रा के लिए निकल पड़े।

हमलोग जिस कार्य हेतु वहांपर जा रहे थे उसमे वहां के मुल निवासी आदिम जनजाती के साथ हमलोगो को संवाद बनाते हुए कार्य करना था। लेकिन वहां के कुछ लोग इसको एक कठीन कार्य मान रहे थे। लगो का कहना था कि यहां के लोगों का रहन-सहन बिल्कुल अलग है। ये लोग अपने किसी कार्य मे बाहरी लोगो को स्थान नही देते है। जिससे उनलोगों का जुड़ाव अन्य लोगो के साथ वहुत कर रहता है।  यही बिचार हमलोगो को वहां के माहौल को समझने के लिए प्ररित कर रहा था। जब भी हमलोगों की निगाहें वहां के मुल निवासी पर परती थी हमलोग कुछ समझने की कोशिश करते थै। किसी ने समझाया कि यहां के ये लोग गरीव से भी गरीव यानी अत्यंत गरीब है। इन लोगो की मुल आमदनी पशुपालन है साथ मे कुछ अन्य व्यवसाय भी है जिससे इनलोगो का जीवनयापन चलता है। इनलोगो मे शिक्षा की भारी कमी है। हलांकि समय के साथ इऩलोगों मे समझदारी का विकास हुआ है लेकिन उसका स्तर अभी भी काफी कम है।

    हमलोग खुंटी पहुँकर अपनी कार्य के संपादन मे लग गये। वहां भी हमलोगो को आदिम जनजाती के बारे मे समझाया गया और हमलगो को कहा गया की कार्य उन्ही लोगों के बिच मे रहकर करना होगा। यहां की एक वस्ति की दुरी दुसरे से काफी दुर होती है। रास्ते कहीं पर चौड़ा कही पर काफी सकड़ा होता है। इऩ्ही मार्ग से हमलोगो को जाना होगा और कार्य संपादन के बाद लौट आना होगा। इन बिचारो से खुद को संयुक्त करने के लिए हमलोगों को एक स्थानिय व्यक्ति की जरुरत थी जिससे की हमें यहां के बारे मे जानकारी दे तथा हमारा मनोबल भी बढ़े।

हमने अपने एक करीवी रिस्ते से संपर्क बनाया और फिर एक अनजान रास्ते पर निकल परे इसबार हमलोगो का उदेश्य चहां के मुल निवासी आदिम जनजाती के बारे जानना तथा जोखिम को समझना था। जिससे की हमारी कार्ययोजना को बल मिले। अनजान रास्ते से गुजरते हुए हमलोग मंजिल के तरफ बढ़ रहे थे। कुछ लोग हमारे अनजानेपन से लाभ भी उठाते दिखे पर हमलोगों की सुझबुझ काम आयी। अब हमलोग अपनी मंजिल के पास थे।

     रिस्ते का अपना एक भाव होता है जिसे मिलकर नविनता प्रदान करना होता है। इन भाव के साथ जुढ़ाव का अपना ही एक समझ होती है। इऩ मुलाकोतों की यादें काफी दिनों तक हमारी स्मरण पटल पर रहती है। इसलिए भारत के लोग अतिथी देव भव कहते है। हमलोगो अब अतिथी सत्कार मे सुकुन और शांती का एहसास महसुस कर रहे थे । कुछ समय के लिए हमलोग ने ऐसा महसुस किया कि हमारी सारी चिंता निर्मुल हो गई है। बातचीत का सिलसिल जारी था। हमारी बातचीत मे कई ऐसे पहलु आये जिसपर उनलोगो का भरपुर आश्वसन मिला। उनलोगों ने हमलोगो का हौसला अफजाई करते हुए सबकुछ सही रहते का अस्वासन दिया। उनका मानना था की यदी हमलोग सही रास्ते से अपने कार्य संपादन करेंगें तो कोई समस्या नही होगी।

  बच्चों का संवाद बड़ा ही मधुर्य होता है हमलोगों ने बच्चे से उसके बारे मे जाना और उसकी चंचलता ने वहां के सारी वारिकी को समझने मे कफी मदद की। अब हमलोगो को वहां से बिदा होकर पुनः यात्रा के लिए निकलना था। हमलोगों अब स्टेसन पहुँचने के लिए तैयार थे। उनके गाड़ी मे परिवरिक समुह के साथ ही निकल परे। यहां बच्चो ने अपनी भावपुर्ण बिचार से हमलोगो को रोमांचित करते रहे। अवलोग स्टेसन पर थे। यहां से हमारी मुलाकात और साथ का यात्रा अपने अंतिम पराव पर था। इन कुछ पल का सानिथ्य से जो हमलोगो का जुड़ाव हुआ उससे अलग होना एक कठीन बिषय था। लेकिन किसीने हमारे ध्यना को इंगित किया और अभिवादन के साथ हमलोग आगे निकल पड़े।

हमारी खुंटी की ये दुसरी यात्रा थी पहले यात्रा मे हम एक सिमित जगह मे रहते हुए समय के साथ एक व्यवस्था का हिस्सा बनकर लौट गये। यहां हमलोगो की वहां के आसपरोस की ज्यादा जानकारी नही हो पायी। इसबार हमको एक बड़े क्षेत्र की यात्रा के साथ बहुत कुछ जानने का मौका मिला। ये यादगर पर अब हमारी यादों का हिस्सा है।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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By sneha

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