भाव का प्रभाव

भाव का प्रभाव

भाव का प्रभाव

भाव का बड़ा ही गहरा प्रभाव होता है। हमारे शरीरिक व्यवहार को धीरे – धिरे यह बदल देता है। भाव हमारे मानसिक पटल पर जब आता है तो हमारी खुशी को यह संंचालित करने लगता है। जिससे हमारा झुकाव भी उसी तरह हो जाता है। झुकाव के बाद हमारी मनःस्थिति भी उस तरह की बन जाती है क्योकि हमे अपने भाव मे रहना अच्छा लगने लगता है। भाव का संचालन हमारी शरीरिक विशेषता के कारण होता है। इस तरह हम स्वभाविक बृति के साथ रहते हुए एक खास तरह के गुण के धनी हो जाते है और हम एक खास तरह के लक्ष्य के प्रति संवेदनशील भी हो जाते है।

भाव निर्माणः भाव के निर्माण के लिए साधना का होना जरुरी है साधना से हमारी आंतरिक शक्ति को शुद्धी मजबुत करते है। इसके लिए जरुरी आयाम के साथ आंतरिक व्यवस्था को सही करते हुए एक साध्य लक्ष्य को पाने की पुरी चेष्टा करते है, जिससे हमारे स्वभाव मे अनुकुल परिवर्तन आता है जो हमारे भाव को नियंत्रित करते है। यही गुणकारी भाव के कारण जो गुण हमारे अंदर आता है वह हमे दुसरो से अगल कर देता है। हमारा कठीन परिश्रम हमे सबलता प्रदान करता है, जिससे हम प्राकृति के साथ स्वयंं को आगे ले जाने के लिए जरुरी आयाम को बखुबी समझ सकते है। स्वछंदचारी लोगो को यह भाव समझ नही आता है जिससे उसके बास्तविक विकाश की सीमा को पाना कठीन हो जाता है।

सुखमय जीवन :- स्वयं के भाव को नियंत्रण से हम अपने उपर होने वाले प्रभाव को बखुवी समझ सकते है तथा समय के साथ होने वाले परिवर्तन के प्रति सतर्क भी रहते है जिससे हमे अधीर होने की जरुरत नही होती है। भविश्य के प्रति हमारा नजरिया भी मजबुत बनने लगता है तथा हमारा अनुमान भी सही होने लगता है। इसी को कहते है सही दिशा मो सोचना तथा सही कदम उठाना जिससे की हमारी गुणत्मक पहलु का विकाश हो और हम अपने जीवन के मुल्यों को बढ़ा सके। हमारे भाव मे अनायास परिवर्तन हमे ततकाल तो खुशी दे सकता है पर जीवन के ऊपर आने वाले प्रभाव को हम नही समझ सकते है। अतःसाधना का मार्ग अपना कर एक विश्वसनीय व्यवस्था के साथ खुश रहना सही होता है जो मुक्ति का भाव बनाता है।

हमारी भावना के निर्माण के कई आयाम होते है। हमारी भावना खुशी का सबसे उन्नत साधन है। जो योगी होते है वे अपने साधना से अपने भाव का निर्मण करते है जबकी जो भोगी यानी सामान्य व्यक्ति होते है वे अपने भावना के आधीन होते है। उसके भावना का जब सम्मान होता है तो वे समझते है कि हमारा मान-सम्मान बढ रहा है। यदि उनके मान-सम्मान मे कमी महसुस होता है तो उन्हे लगता है सामने वाला हमारा अवहेलना कर रहा है। अतः उन्नत भाव का निर्माण जरुरी है जिससे जीवन के उच्च आदर्श को प्राप्त किया जा सके।

  भाव प्रधान कार्य के प्रती हमारे लगाव की कोई सीमा नही है क्योकि उसके पुरा होने या नही होने से हमारी मानसिक स्वास्थ्य पर पुरा असर परता है। कभी-कभी तो लोग गहरे सदमे मे चले जाते है। हमारे देखने समझने तथा आंतरिक गतिविधि से जो बिचार बनता है वही विचार हमारे भावना का निर्माण करता है। हमारे भावना का हमारे जीवन मे वहुत बड़ा प्रभाव होता है। इसको सही रुप से संचालित करने की जरुरत होती है। इसके लिए हमे इसको सही रुप से समझने की जरुरत है जो सधना से ही संभव है।

भावना की मुल भाव को प्राथमिकता देने की जरुरत है जिससे की हम वर्तमान को भविश्य के साथ न्याय कर सके। शांत स्थाई चित से साधना के द्वारा नियंत्रित भाव के समायोजन से जीवन मे सबकुछ पाया जा सकता है।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

संबंधित लेख को जरुर पढ़ेः-

By sneha

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!