उलझन

उसझन

उलझन

उलझन यदि सही समझ न हो तो ये कभी समाप्त नही होती है। उलझने की प्रक्रिया आंतरिक होती है। हमारे निर्णय लेने की क्षमता को ये दर्शाता है। कार्य का आनंद हमारे बुदधी, विवेक और कार्य क्षमता पर निर्भर करती है। हमारे जो ये आँतरिक शक्ति है वही हमे ब्राह्य वातावरण की पुरी जानकारी को डाटा के रुप मे हमारे अंदर संचित करती है जिसके सहारे हम सही निर्णय ले पाते है। यदि हमारी ज्ञानेनद्रिया सही रुप से कार्य नही करती या संग्रहित डाटा़ को विश्लेषित नही कर पाती तो उलझन की समस्या आती है। हमारे द्वारा किये गये अनुभव हमे उलझन मे पड़ने से बचाते है। हमें इसके उपयोग मे भी सावधानी बरतनी परती है। जल्दी में, भय में, उत्सुकता में लिये गये निर्णय भी हमे कभी-कभी उलझा देते है।

उलझने से हमारी दैनिक कार्य प्रणाली भी प्रभावित होती है। हमारा दिमाग कार्य को सही रुप से हल करते हुए जो सुख की अनुभूति करता है वह तो अद्वितिय होता ही है,, हम ब्राह्य रुप से भी संतुष्ट दिखते है, जिससे हमारे कार्य संयोग भी उत्तम होते है। उलझन के लिय बिभिन्न तरह के व्यवस्था का उपयोग करते हुए स्वयं को व्यवस्थित करने की विधी अपनायी जाती है। यदि इसके बावजूद भी समस्या का सही समाधान नही निलकता है तो हमारी चेतना हमारी दिमागी व्यवस्था के अनुरुप हमे स्वप्न के रुप मे इसके समाधान को हमारे पास रखती है। यदि हमारी विवेक और तर्क शक्ति उच्च स्तर की है और इसमे हम विस्वास रखते है, तो हम सही समय से अपने उलझन से बाहर निकल सकते है। हमारी यही बृति हमे औरों से अलग करती है जो समय के साथ हमारी कार्य उर्जा मे उतरोत्तर विकाश भी करती है।

उलझने के समय, हमारे विश्वास के व्यक्ति हमारे लिए बड़े ही उपयोगी सावित होते है। उनके द्वारा दिया गया समाधान हमारे लिए अच्छे मार्गदर्शक सावित होते है। हमारी जानकारी को एक उपयुक्त व्यवस्था मिल जाती है जिससे की हम उलझने के पार जा सकते है। निर्णय लेने के बाद होने वाले परिणाम के मद्देनजर हम बहुत उत्साहित हो जाते हे की हमे जो नुकसान होने वाला था उसका मानडंड अनुमनतः कम होगा। यहां के उद्दरित प्रसंग मे उलझन के बाद होने वाली सामान्य व्यवहार को दर्शाया गया है। व्यक्ति यह सोचता है की वह कार्य करने की सही कार्य क्षमता रखता है पर वह स्वभाव वस सही समय का प्रवंधन नही कर पा रहा है। यध्यपि ऐसा होता नही है हम स्वयं को सही तरह से यहां मुल्यांकन नही कर पा रहे होते है। यही गलती हमे फिर उलझा देती है और हम फिर आगे निकल जाते है।

कभी-कभी ऐसा होता है कि हम थक हार कर इस कार्य को छोड़ देते है और फिर दुसरे कार्य मे लग जाते है। यदि किसी समय इस तरह के प्रसंग उद्धरित हो जाये तो फिर हमारी वही उलझने हमे व्यथित करती है जो हमारे तनाव का कारण बनती है। हम इसी कारण से स्वयं को काफी तरंगित पाते है और सही सामाधान के लिए आगे निकलते हुए सही समय की तलाश करते है। कवि की ये व्यवस्था उवाउ लगती है। वह चाहता है कि उलझने को सुझाने के लिए हमें ध्यान और ज्ञान योग को एकिकृत करते हुए सम्नवय के साथ आगे बढ़ना होगा। हमे एक सही विकल्प के साथ स्वयं को दृढ़ करते हुए आगे जाना होगा जिससे की हमारी कार्य उत्साह बना रहे और हमारी खुशी को हमेशा एक नवीन संदेश मिलता रहे।

लेखक एवं प्रेशकः अमर नाथ साहु

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By sneha

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