


अन्नदाता
भोजन जीवन का आधार है जो हर प्रकार के जीव के लिेए एक जरुरी उपाय है। कृतिम और प्राकृतिक दोनो तरह के भोजन मानव समाज के लिए आजकल उपलब्ध है। पाकृतिक से प्राप्त भोजन के रुप मे मांसाहारी और शाकाहारी दोने तरह के भोजन मिलते है। मुख्य रुप से भोजन के रुप मे अन्न का वहुत बड़ा योगदान है। अन्न उत्पादन करने वालों को किसान कहा जाता है। किसान का ही मुख्य कार्य होता है अन्न का उत्पादन करना। इसके लिए उसे विशेषज्ञता प्राप्त होता है। किसान का पुरा जीवन ही कृर्षि पर आधारित होता है। इसलिए भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां की 80% जनता कृर्षि पर आधारित है। यहां पर किसान की हालत आजकल अच्छी नही है। क्योकि आधुनिक युग उद्योग आधारित जीवन को प्राथमिकता देता है। लेकिन भारत मे कृर्षि को उद्योग का दर्जा प्राप्त नही है इसलिए यहां परंपरागत कृषि ही की जाती है। जिसके कारण उधिक लागत के बावजुद आय कम होती है। इसके लिए अवतक किये गये प्रयास किसान के समृद्धी का कारण नही बना।
कृर्षि के बदलते स्परुप मे आजकल बिना मिट्टी के भी कृर्षि होने लगी है लेकिन उसका स्थान सिमित है। आपनी जरुरत को पुरा करने के लिेए लगातार किये गये प्रयास मे कई तरह के उपाय सामिल है। लोग अपने छत पर भी कृर्षि कार्य को करने लगे है जिससे की उसको आर्थिक आमदनी का जरीया बना है पर इसका भी दायरा कम है। मुल रुप से किसान जिसको की अन्नदाता कहा जाता है। उसके हालात मे जरुरी उपाय करने की जरुरत है। किसान द्वारा उत्पादित वस्तु को सही किमत मिले इसके लिए जरुरी है कि इसके भंडारण, वितरण तथा बिक्रि की सही व्यवस्था हो। उन्नत तकनीक के सहायता बिभिन्न प्रकार के उत्पाद को बनाने की भी जरुरत है।
आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए किये जा रहे प्रयास मे इसका बहुत बड़ा योगदान है। वैश्विक स्तर पर जो प्रयास चल रहे है। उसमे उद्योगा आधारित जीवन को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है क्योकि आजकल विज्ञान ने विकाश के कई रास्ते खोल दिये है जहां पर नित्य नये शोध हो रहे है जिससे की मानव के जीवन की आवधारणा ही बदल दे रही है पर आधिकांश जनता आज भी अपने मुल स्वभाव के साथ रहते आये और रहते है। इसको ध्यान मे रखते हुए किसान की आर्थिक सुधार पर व्यापक शोध के साथ कार्य को उत्तम व्यवस्था बनाकर आगे ले जाने की जरुरत है।
आजकल हर वर्ग के लोग स्वयं को उपर रखने के लिए प्रयासरत है लेकिन मुल रुप से खादान्न की आत्मनिर्भरता ही हमे सबल बनाती है जिससे की मुलभुत आवश्यता को पुरा किया जा सकता है। किसान मे हित मे जितने भी कार्यक्रम किये जा रहे है उसका वास्तविक लाभ किसान तक नही पहुँच पाता है उसका कारण सरकारी तंत्र को माना जाता है लेकिन नये व्यवस्था मे इस तरह के प्रभाव को कम करने मे मदद मिली है जिससे लोगो मे विस्वास बढ़ा है। गावों मे तेजी से पलायन हुआ है जिससे की श्रमिक की कमी महसुस हो रही है जिससे की कृर्ष कार्य प्रभावित हो रहा है। श्रमिक को देय राशि मे बृद्धी के कारण कारण कृर्षि कार्य महगा हो गया है जिससे पुरी व्यवस्था चरमरा गई है।
अन्नदाता को सही रुप से क्रियाशिल करते हुए कार्य की बारिकी ख्याख्या करनी होगी। एक उन्नत व्यवस्था के सहारे खादान्न पर भारत को आत्मनिर्भर होना होगा जिससे की समय के साथ सारी जुरुरतो को पुरा किया जा सके। किसान से जुड़े शोध को एक नयी दिशा देने की जरुरत है। इसके लिेए किये जा रहे प्रयास को किसान तक सही समय पर पहुँचे यह जरुरी है। पानी की समस्या आजकल एक बड़ी समस्या के रुप मे आयी है। इसका भी सही समाधान खोजना होगा जिससे की समय के साथ इसको सही किया जा सके। लोगो मे जाकरुकता की जरुरत है जिससे की भुमी और पानी दोनो का संरक्षण हो। पेड़ पौधो लगाये जाये और आसपरोस को हरा भरा बनाया जाय जिससे की प्राकृतिक की अपनी व्यवस्था बनी रहे। जय किसान
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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