तीसरा सोमवारी

तीसरा सोमवारी

भगवान भोलेनाथ को जल प्यारा है। शुद्ध जल को व्यवस्थित तरीके से भगवान को जलाभिषेक के बाद मन में शीतलता का भाव आता है।

कहते है की जब भागीरथी के कठोर तप से गंगा स्वर्गलिक से धरती पर अवतरित हुई थी तो उसके तेज धार को रोकना संभव नहीं था। तब भगवान शिव ने अपनी जटा में गंगा को समेट कर मानव कल्याण के लिए गंगा की निरसित किया था।

बहती जल धारा जीव जगत के लिए जीवन का आधार है। बहुत सारे पशु पक्षी अपना प्यास बुझाने के लिए बहता जल का ही उपयोग करते है, लेकिन उनकी जरूरत सीमित है। भोगवादी मानव को जल की महत्ता का एहसास भगवान के प्रति उनके जलाभिषेक से गुणित होते रहता है।

जल की शीतलता मन को शांती देती है। गुणकारी जल को भगवान को अर्पण किया जाता है तो मन के अंदर जो भाव बनते है, उसका प्रतिविम्ब हमारे जीवन पर परता है। इसी भाव को इस काव्य लेख मे दर्शाया गया है। जल के गुणकारी भाव को समझकर जीवन को सुधारने का जो प्रण लिया जाता है उससे जीवन में एक नयी रोशनी मिलती है। जिससे हमारे जीवन में आनेवाले चुनौती के सामना करने का ताकत बढ़ जाता है।

भाव ही वह तथ्य है जो हमारे जीवन में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए हमे नियमित रूप से प्रेरित करते रहता है। इसको हमेशा सुदृढ़ करने के प्रयास करने परते है। जीवन मे उत्पन्न होने वाले वाधा से जो हमे सिख मिलता है उससे भाव का नवीकरण होते रहता है। लेकिन चेतना को जगानेवाला भाव जल के अर्पण से जिस रूप में हमारे पास आता है वह एक अद्वितीय है। एक समग्र चिंतन का भाव जीवन को सही तरह से स्थापित करने मे मदद करता है।

पावन गंगा की धरा पर लाने के प्रती जो भाव हमारे जनमानस मे है उससे जीव के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हुआ है वह आज जीवन को एक उँचाई देता है। इस तरह के सोच आज के भोगवादी समाज को एक दुसरे से जुड़ने का माध्यम बनाता है। हमारे अंदर त्याग के भाव सेवा के भाव से जिस समाज का निर्माण हुआ है और जिस चुनौती को सामना होना है उसके लिए इस तरह के भाव का होना जरुरी है।

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

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By sneha

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