मेहदी की मुश्कान

मेंहदी की मुस्कान

पैधों मे गुणकारी मेंहदी अपने सुनहरे रंग के लिए जानी जाती है। इसका रंग लगने और लगाने वाले दोनों को प्रभावित करता है। उत्सव के अवसर पर इसके श्रृंगार के उत्सव का रुप भी दिया जाता है। उकेरे जाने वाले तथ्य की भी बिभिन्नता होती है। जिसकी कलात्मकता हमारी अंतः करण को जगाती है। हमारे मनोभाव को प्रभावित करने वाला यह गुणकारी रंग अपने कला के साथ श्रृगार किये हुए को भी समझने का एक मौका प्रदान करता है। उकेरे जाने वाले तथ्य भी व्यक्तिगत पसंद का रुप होता है जो आंतरिक भाव को स्पष्ट करता है। भाव की शैली भी समझने वाले और लगाने वाले कि अलग हो सकती है लेकिन अनुमान तो लग ही जाता है। इसके पारीकी हो या न हो मन को कुछ देर के लिए आकर्षित कर ही लेता है।

रुप रंग को निखारने के साथ मन की स्थिरता को समझने के लिए बाहरी भुमीका जरुरी होता है जिसमे कुछ ऐसे तथ्य होते है जिसे संकेत के भाषा के रुप मे कहा जाता है। यहां मेंहदी का ये प्रस्तुतीकरण बड़ा ही ओनोखा होता है क्योकि उसके समय के साथ और व्यक्ति के पसंद के अनुरुप ही सजााया जाता है। कला के पारीकी को श्रंगार के प्रति लगाव होता है तो रोमाश का आनंद अपने चरम पर रहता है क्योकि उसकी व्यापका उसके मस्तिष्क को सामान्य से अधिक देर तक आंनंदित करता रहता है।

अपनो का साथ और इस कार्य शैली मे लगो समय को भी बड़े ही आनन्द के साथ महसुस किया जाता है। क्योकि आनंद के एक अनोखे पल को यादगार बनाने के लिए किये जाने वाले प्रयास मे इसका अपना ही स्थान होता है। श्रृगार का यह रंग शरीर के अंतरीक सुन्दरता को निखारने के अहम भूमिका निभाता है।

कहनी थी जो बात नही कह पाये। बस मेंहदी लगा आये। खुशीयां थी इतनी की कही न जाये। ये मेंहदी की मुशकान थी जिससे प्रफुल्लीत मन खिल जाये।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

  • बैवाहीक चक्र को नियमित और व्यवस्थित करते हुए आनंदित जीवनयापन के सूत्र को अपनाना जरूरी होता है।
  • प्यारे हो के एहसास को गतिशीलता के साथ जीने के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति की जरूरत है जिसमे यह उक्ति जरूरी उपाय समझता है।
  • प्यारा गुलाब से खुद को समझने का एक अनोखा एहसास हमे जीवन के समझने का एक मौका प्रदान करता है जिससे की हम स्वमुल्यांकन कर सके इससे इस उक्ती को समझा जा सकता
  • प्यारा गुलाब से खुद को समझने का एक अनोखा एहसास हमे जीवन के समझने का एक मौका प्रदान करता है जिससे की हम स्वमुल्यांकन कर सके इससे इस उक्ती को समझा जा सकता है।
  • खुद को संभालने के लिए एक कार्य योजना के साथ स्वयं को तैयार करना होता है जिसकि हिदायत भी सहेली दे दे तो क्या कहने।
  • दृढ़ता से नौतिक बिकाश के लिए हम अपने संकल्प शक्ति का प्रयोग करते हुए आनावश्यक उलझन को दुर करते है।
  • तप और ज्ञान से मन की स्थिरता को स्थापित करते हुए जीवन को समझना आसान होता है। इसको संयोग ऐसे समझे…..
By sneha

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