कुलदिपक
अल्पकालिक जीवन के भविष्य की पहचान कुलदीपक से होती है, इसके आगमन से परिवार का जहां निर्माण होता है वही एक उम्मीद की किरण दिख जाती है। जीवन के अंतिम पन में सेवा की तमन्ना भी यहां से आकार लेने लगती है। मानव जीवन को अपने वैभवशाली अतीत को आगे ले जाने के लिए भी कुलदीपक की जरूरत होती है। दिर्ध सोंची मानव को समय के साथ आगे चलने की प्रेरणा भी प्रकृतिक विधान से ही मिलता है।
जीवन की गम्भीर चुनौती का समना करते हुए किसी अनहोनी की आशंका मन को उद्वेलित करती है वही पर संपत्ती की वारीस के आ जाने से आगे का मार्ग सुगम लगने लगता है। कहा जाता है कि शिशु की शिक्षा मां के गर्भ काल से ही शुरु हो जाती है जो जीवन प्रयंत चलती रहती है्। यह तो खुद को निर्णय लेना होता है कि उसको कितनी और कहां शिक्षा की जरुरत है। परिवार से शुरु हुई शिक्षा को आगे चलकर उसके अंदर संस्कार का विकाश भी करता है।
विकाश को गुणकारी भाव के साथ आगे बढ़ाने के लिए भी परिवारिक माहौल का होना जरुरी होता है। मनोभाव के साथ चल रहा नन्हा को सही एवं लाभकारी भविष्य निर्माण के लिए परिवार के साथ रहते हुए आगे जाना होता है। उसका सबकुछ परिवार होते हुए भी उसको अपना एक अगल पहचान बनाना होता है।
आजकल विसंगतियां तो बहुत है लेकिन हर कुलदिपक अपने परिवार की यश गाथा को जीवन उत्कर्ष तक ले जाते हुए यशष्वी बने यह तमन्ना दिल की पुरी हो इसकी उम्मीद हम करते है। आइये अपने प्यार को बच्चो के सर्वांगिन विकाश के लिए अनुकुलित करे जिससे हम स्वयं को गौरवशाली महसुस करे। आज अपनी जिम्मेदारी को खुद से बाहर निकलकर समझना होता है जिससे की सफलता समय से सही रुप मे मिले।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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