घुंघट की आरजू

घूंघट की आरजू

घुंघट की मर्यादा को निभाने के लिए बहु संकल्पित होती है जिससे की कुल-खनदान की मान-मर्यादा की रक्षा हो सके। बिचार मे द्वंद्ध होने से बिखराव होता है, खुबसुरती के आकर्षण से लगाव होता है, लेकिन घुंघट के बनाव से प्रेम भरा आशीष का योग बनता है, जो परिवार के विकास के लिए जरुरी होता है। परिवार के सभी सदस्य को अपनी सीमा मे रहकर कार्य करना होता है जिससे की विकास की धारा बहती रहै।

धुंघट मे लिपटी बहु की आश बड़ी होती है क्योकि उसको एक सिमित दायरे मे काम करना होता है वांकी के कार्य सहयोग के लिए उसको दुसरे पर निर्भर रहना परता है। बहु को अपनी कलात्मक भाव के साथ सामन्जस्य स्थापित करते हुए परिवार की खुशी को बनाये रखना होता है। उसका आकर्षण तथा वाकपटुता अनहोनी को आने नही देती है। उसको खुश रहना जरुरी होता है। उसके समान्य जरुरत के साथ-साथ कुछ बिशेष का भी ख्याल रखना परिवार वालो का ही कार्य होता है।

स्वयं के लिए मान-सम्मान के साथ परिवार की समृद्धि के लिए बहु लगातार पुजा-पाठ का ध्यान करती है जिससे की सोंच की धारा एकात्म रुप से बनी रहे और चंचल मन को नियंत्रित किया जा सके। बहु को सामने वाले को समझने की कला जाननी होती है साथ ही उसके अनुरुप कार्य करने होते है। उसको अपने बिचार का बनाना होता है जिससे कार्य मे अनावश्यक बाधा उत्पन्न न हो। कहा जाता है कि जहां नारी का सम्मान होता है वहां की समृद्धी काफी अधिक होती है। यहां का भाव आत्म नियंत्रण का होता है, जो दिख रहा है ,उसके अंदर की सोचना तथा जो आप महसुस कर रहे है, उसका समुचित हल खोजना जिससे सभी को नियंत्रित मे रखा जा सके है।

घुंघट की हर आरजू पुरी हो इसके लिए आज के जीवन की गंभीर चुनौती का समना करते हुए आगे जाने की जरुरत है। आज अंदर बाहर दोनो तरह से कार्य को करने के लिए नारी को प्रेरित किया जाने लगा है फिर भी घुंघट की आर मे कार्य संपादन परिवार के खुशी के लिए जरुरी होता है।

लेखक एवं प्रेषक अमर नाथ साहु

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By sneha

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