प्यार की खोज
युवावस्था के शुभारम्भ के साथ ही प्यार की सुगबुगाहट होने लगती है। कुछ प्यार मे सफल हो जाते है तो कुछ सफलता के मझदार मे उलझ जाते है। इन उलझे को सुलझने की जरुरत है जिससे की जिन्दगी की नैया को पार लगाया जा सके। वस्तुतः प्यार को चाहने वाले की समझ कुछ अलग होती है। वह अपने कार्य के प्रती ज्यादा जुराव रखते है। उसमे इसके करने के प्रति एक जजवा होता है। जिसे पा जाने के वाद उसके विकाश की दिशा उतरोत्तर हो जाती है।
यदि व्यक्ति भूखा हो तो उसको प्यार की चाहत नही रहती है क्योकि शरीर की प्रथमिक जरुरत भुख की पुर्ति होती है। जिससे की शरीर की क्रिया प्रणाली को सही तरह से संचालन किया जा सके। जो दिवाने होते है उसको व्यक्तिगत भेद-भाव की बात समझ नही आती है। उसके नजरीये मे उसकी शारीरिक और गुणात्मक विचार ही हावी होता है। इश्क मे अंधे हुए लोगो को नफरत नही भाता क्योकि चाहत की ड़ोर उसके हर विचार के साथ जुड़ा होता है। प्यार करने वाले को खेद व्यक्त करने के लिए भी कोई शब्द नही मिलता है क्योकि उसकी आंतरिक व्यवस्था एकात्म भाव को व्यक्त करती है।
भुख को मिटाने के लिए गुणात्मक पहलू की जरुरत होती है। वह गुणात्मक पहलू जो उसके कार्य की प्रणाली को आसान कर दे। प्यार के गुणकारी लोग अपने प्यार से जुड़कर उसके हर व्यथा को समझकर दुर करने की चाहत रखते है। उसके खुशी मे ही वह अपनी खुशी देखता है। व्यक्ति की अपनी एक अवस्था होती है जिसके दुर करने के लिए व्यक्ति एक दुसरे से संयुक्त होकर स्वयं को खुश रखना चाहता है। इन्ही विचारो को समझने के लिए जिस शक्ति की जुरुरत होती है वही शक्ति उसके सफलता की गारंटी लिखता है। अपने प्यार को पा लेने के बाद उसके विकाश की दिशा उन्नमुख हो सकती है क्योकि उसकी प्राथमिकता बदल जाती है और वह स्वयं को एक व्यवस्था का हिस्सा मान कर आगे बढ़ने लगता है।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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