जीत का घोड़ा
जीत के घोड़ा दौराने वाले का चिंतन मनन विशिष्ट होता है। उसका हर कार्य उसके संकल्प की दिशा से निर्दिष्ट होता है। जिससे वह पल की पल को सहेजता हुआ आगे बढ़ता है। हर कदम पर आने वाली बाधाओं का समाधान करता हुआ वह आगे बढ़ता जाता है। जिससे उसका हौसला बुलन्द होता जाता है। जिससे उसके कार्य उर्जा का स्तर भी लगातार उँचा बना रहता है। उसके शारीरिक मानडंड से लेकर सारे क्रिया-कलाप उसके अपने नियंत्रण मे होते है। इसलिए स्वयं आंकलन उसके द्वारा लगातार किया जाता है। वह अपने मन को खुली छुट नही देता कि वह स्वछंद बिचरण करता हुआ उसे व्यथित कर दे। वल्कि वह अपने मन को अपने कार्य दिशा मे अवलोकन तथा समयोजन के कार्य मे लगाये रखता है। हमारे मन की यही उर्जा हमे उर्जावान बनाये रखने मे हमारा सर्वश्रेष्ट युक्ति सावित होता है।
जीत के मार्ग मे बहुत सारी बाधायें आती है जिसका समाधान करते हुए हमे सबलता हासिल करना होता है। यही सबलता हमारी उपाक्रम बनता है जो हमारे गुणात्मक पहलू बनकर हमे उर्जावान बनाता है। चुनौतीयों का सामना करते हुए हमारे ज्ञान चक्छू भी तीव्र हो जातेंं है जिससे हम आसानी से मार्ग मे आनेवाली बाधा को समझ और हल भी कर सकते है। व्यवस्था और व्यवहार हमारे जीवन के ओ पहलू है जिसके सहारे हम किसी भी परिस्थिती का सामना आसानी से कर सकते है जबकी हमारा भाव उदार होना चाहिए। संकुचित भावना के लोग एक दायरे मे सिमट कर रह जाते है। जिससे उसकी जीत का समय लम्बा हो जाता है। हमारी समझ के दायरे को जीत के हिसाब से हमे नियोजित करना होता है।
जब भी हम कार्य से निरुत्साहित होकर कार्य से विरक्ति लेने की सोचते है तो हमारा प्रण हमे रोकता है। हमे बिचार को एक दिशा प्रदान करता है। हमारे रास्ते हमे उत्साहित करते है। जिससे की हमारा कार्य उर्जा का स्तर उँचा हो जाता है और हम पहले से ज्यादा ताकत के साथ आगे बढ़ते है। इसलिए जीत के घोड़े दौराते समय हमारे प्रण हमारा सबसे बड़ा उपक्रम होता है। बाधाओं के साथ स्वयं को बदलने वाले का जीवन कही नही पहुँचता है क्योकि उसका सवलता कहीं खो जाती है। वह दुसरे के प्रेरणा स्त्रोत नही बन सकता है।
जीवन रुपी यात्रा शरीर की यात्रा को कहा जाता है जिसका एक पराव मृत्यू है। लेकिन आत्मा रुपी यात्रा को अतंत यात्रा का राही कहा गया है जिसके अंत को समझ पाना संभव नही है। इसलिए लेखक ने अंततः प्रकृति मे समाहित की बात कही है क्योकि प्रकृति है सर्वोत्तम है जीससे जीवन नियोजित होता है।
बिचार के समायोजन से मन दृढ़ होता है। जिससे विश्वास बनता है। विश्वास को मजबुत करने के लिए अभ्यास की जुरुरत होती है। अभ्यास को शुद्ध करने के लिए प्रतियोगीता को जीतना परता है। इसके लिए हमे लगातार अपने बिचार को निवीकृत करने की जुरुरत होती है और फिर जीत को घोड़ा आगे बढ़ने लगता है। जय हो आपका
आप अपने बिचार को निचे दिये गये कोमेंट बॉक्स मे जरुर लिखे जिससे आपके बिचार लोगो तक पहुँतकर लोगो का मार्गदर्शन करे।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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