तेरे पनाहो में

तेरी पनाहों में

तेरी पनाहों में

वैवाहिक जीवन को सुखमय और आनंदित बनाने के लिए आपसी समन्वय का होना जरुरी होता है जिससे की भावनात्मक लगाव का स्तर नविकृत होकर उल्लासपुर्ण बनी रहे। व्यवहारिक जीवन मे होने वाले उथल-पुथल को झेलते हुए जो तनाव पैदा होता है उसका समायोजन होना भी जरुरी होता है। इस समायोजन के बाद सुकून के पल का एहसास होता है। फिर मन एक स्वतंत्र विचार को जन्म देता है जो व्यवहारिक जीवन को और अच्छा बनाने के लिए उत्साह के स्तर को बढ़ा देता है। यह प्रक्रिया स्वतः स्फुर्त गति से चलते रहना होता है जिससे की सदभावना बनी रहे। आपसी सम्बन्धों को प्रगाढ़ता का यथोचित समय भी यही होता है जब मन उच्चश्रृख बना हुआ होता है। शरीर के अंतर उत्साह के जो बल तरंगित होता है उससे एक दुसरे को समझने मे सहुलियत होती है। इसी समय जीवन साथी की नजदीकियां काफी अच्छी लगती है जो एक दुसरे के करीब आने से सुकून प्रदान करता है।

   एक दुसरे के करीब आने के बाद भावनाओं का स्तर काफी ऊँचा हो जाता है जिससे सासों को चलना की प्रक्रिया तेज हो जाती है। इस स्थिति मे समान्य व्यवहार की सारी बातें भूल जाना एक स्वभाविक बृति बन जाती है। स्वयं के अंदर मे हो रही इस बदलाव से उत्साहित मन को अच्छा लगने लगता है और उस दिशा मे सोचने की प्रबृति भी बढ़ जाती है। ऐसा भी पल आता है जब स्वयं की धड़कन खुद को सुनाई देने लगती है। बढ़ती भावनाओ के साथ आंतरिक बदलाव से नस-नस मे तनाव के साथ ही एक गुदगुदी या धुड़धुड़ी सी होने लगने लगती है। ऐसा होते-होते स्वयं के अंदर की बदलाव से बाहरी परिवर्तन होने का आभास भी महसूस होने लगता है। इस परिवर्तन मे सामान्य व्यवहार से खुद को अलग होने की अनुभूति की स्वीकारोक्ति आंतरिक मजबुती प्रदान करती है। जो व्यवहारिक जीवन की अच्छी समझ पैदा करता है।

   आपसी रिस्तो के बिच होने वाले इस सुखद अनुभुति की कसक बनी रहती है जो आंतरिक रिस्तो को मुजबूति प्रदान करती है। इस अनमोल पल को पाने के लिए स्वयं के अंदर एक तैयारी करनी होती है जो स्वयं को आनंदित करती रहती है। शादी के रिस्तो को प्रगाढ़ बनाने के लिए इस तरह की आंतरिक अनुभूति के साथ जीवन को सवांरते हुए आगे बढ़ने से परिवारिक दायित्व के साथ-साथ जीवन को एक मजबुत विकास का आधार मिलता है।

ऐहसास एक ऐसा पहलू है जिसको बनाये रखने के लिए व्यवहारिक जीवन के कुछ खास पहलू को व्यवस्था के साथ नियोजित करते रहना होता है। इसको एक उत्सव जैसा व्यवहार के रुप मे भी किया जाता है जो की हमे समझ की गहराई देता है।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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By sneha

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