
मजदूर
कार्य करने की जरुरत तो सबको होती है कोई मजबुरी मे करता है तो कोई शौक से करता है तो स्वभाव वस करता है। जब किसी खास व्यवस्था मे कार्य किया जाता है और उसके बदले कुछ प्राप्त किया जाता है तो वो मजदुरी के दायरे मे आता है। आजकल जब विशेष कर दैनिक जरुरत की पुर्ती मे कमी आ जाती है तो कार्य करने के लिए मजबुर होना परता है तो दैनिक वेतनभोगी के रुप मे कार्य को करने परते है तो वो मजदुरी के दायरे मे आता है। यही से आगे बढ़ने की कोशीश तीव्र होने लगती है लेकिन सही व्यवस्था के नही होने से मजदुर मजदुर ही रह जाते है।
मनुष्य एक परपोषी जीव है उसको अपने भोजन के लिए दुसरों पर निर्भर रहना परता है इसके लिए उसको कार्य करने की जरुरत होती है। बिना कार्य के भोजन को पाना संभव नही है। मानव समाज मे जो श्रम बितरण का मानढंड है उसी के अनुसार लोग अपना जीवोकोपार्जन करते है। यहां इसके लिए एक समान वितरण नही है इसी करण किसी को ज्यादा तो किसी को कम वेतन मिलता है। व्यवस्था बनाने कि कला जिसमे है वो धनोपार्जन मे आगे रहते है फलताः वो मजदुर के श्रेणी मे नही आते है वे व्यवस्थापक की भुमिका मे अपना योगदान देकर खुद को आगे रखते है। लेकिन जो व्यवस्था के धनी नही है वे मजदुरी के करते हुए अपना जीवकोपार्जन करते है।
मजदुर को उसके कार्य के अनुरुप मजदुरी मिले तो उसके अपने हित को पुरा करने मे कोई मुश्किल नही होगी लेकिन उसका शोषन होना शुरु हो जाता है। जिससे की उसकी आर्थक हालत दैनिय हो जाती है। इसी व्यवस्था को सुचारु रुप से लागु करने के उदेश्य से 1 मई को प्रती वर्ष मजदुर दिवस के रुप मे मनया जाती है जिससे की जनक्ल्याण की भावना जागृत हो और समरता आवे। सब लोग जब खुद की कार्य के प्रति यथेष्ट रहेगा तो यह विषमता मिट जायेगी और मजदुर दिवस की मह्त्ता भी बढ़ जाय्गी।
हम आज एक उन्नत मानव समाज का हिस्सा है हमारी चितन सोच बिचार और व्यवहार उन्नत हो इसकी कामना हमे रहती है। इसके लिए हमे उचीत मार्गदर्शन के साथ समय बद्ध तरीके से यही समायोजन की जरुरत है जिससे की हमारी गुण के साथ हमारा सही विकाश हो सके। विकाश की यह प्रक्रिया ही एक राष्ट्र को खुशहाल और विकशीत राष्ट्र के रुप से स्थापित करते हुए मानव समाज के प्रति उसके योगदान को याद करता रहेगा। मजदुर हमेशा जय हो
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लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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