बैवाहिक चक्र
स्वयं को द्वरा जो प्रयास किये जाते है वह यथेष्ठ होता है तो कभी आत्मगलानी का शिकार नहीं होना होता है। इसी बिचार को संयमित तथा नियमित करना होता है जो हमे व्यहार तथा स्वप्रेरणा से ही सिखना होता है। बौवाहिक जीवन की हर चुनौती को आसान बनाने के लिए कुछ साहसिक उपाय तो किये ही जाने चाहिए जिससे की हमे जीवन की चुनैती को समझने मे सुहिलियत हो। बिचार की इसी प्रवाह को बौचारिक स्तर पर मंथन करते हुए आपको अनुग्रहित करने हेतु हमारा प्रयास है।
बैवाहिक जीवन मे आने के साथ ही स्वयं को जीने की कला को सिखना होता है क्योकि साथ और विश्वास का पहलू हमेशा जुड़ा होता है। एक दुसरे के प्रती वफदार रहते हुए जीवन को आगे बढ़ाना होता है। बिवाह पुर्व की स्वतंत्र जीवन और आंतरिक चंचलता को तो शांति मिलती है लेकिन नवीन चुनौती भी सामने आ जाती है। भारतीय पद्दती मे परीवार की समझ जीवन के गुणकारी भाव को सिखने मे मदद करते है। जिससे बैवाहिक जीवन के चुनौती को समझना आसान हो जाता है।
एकल परिवार मे सिखने की कला को समस्या और निदान के सहारे सिखनी पड़ती है जो कभी – कभी असहज हो जाता है और एक दुसरे के प्रती दोषारोपन की भी समस्या आ जाती है। यदि लोकव्यहार को गंभीरता पुर्वक समझा जाय तो सभी समस्या का आसान हल खोजते हुए सहज ही जीवन को आनंदित करते हुए जीवनयापन किया जा सकता है। इन्ही वातों को रेखांकित करता ये तथ्य हमे सहजता को सिखाता समझाना है।
लेखक एवं प्रेशकः अमरन नाथ साहु
वैवाहीक चक्र को नियमित और व्यवस्थित करते हुए आनंदित जीवनयापन के सूत्र को अपनाना जरूरी होता है।
प्यारे हो के एहसास को गतिशीलता के साथ जीने के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति की जरूरत है जिसमे यह उक्ति जरूरी उपाय समझता है।
साधारण ट्रेन में यात्रा अनुभव से मिली एक सिख को दर्शाता ये काव्य लेख हमे सावधान रहने के लिए जरूरी उपाय समझता है।
प्यारा गुलाब से खुद को समझने का एक अनोखा एहसास हमे जीवन के समझने का एक मौका प्रदान करता है जिससे की हम स्वमुल्यांकन कर सके इससे इस उक्ती को समझा जा सकता है।
खुद को सम्भालने की सलाह देने वाली सहेली की बिचार शादी की माहौल मे एक प्रेरक व्यंग भी है और खुद को करीव रहने की जिम्मेदारी भी है।