प्यारो हो
प्यार की दशा और दिशा को आज के समय मे एक बन्धन मे बांधकर रखना चुनौती है क्योकि जीवन की समझ को विज्ञान ने बदल दिया है। बदले हुए सोच से आगे बढ़ने की ललक तीव्र है साथ ही शारीरिक मानडंड को भी पुरा करना होता है। दोनो को साथ ले चलने मे भटकाव का स्तर चरम पर होता है। सुनियोजित व्यहार के साथ आगे जाता हुआ व्यक्ति ही आपने को सही रुप से स्थापित कर पाता है।
स्वयं को स्थापित कर लेने के वाद भी उसका ये अभियान नही रुकता है वह समय के साथ मार्ग पथ पर व्यवस्थित रहते हुए आगे निकलते चला जाता है। जिससे आपसी बिश्वास की डोर वन्धती चली जाती है। यही भाव एक दुसरे को बांधकर रखता है। परिस्थती से उत्पन्न होने वाले परिवर्तन को सही ठहाराते हुए आगे जाता हुआ जीवन को समझ लेने के बाद कहते है तुम प्यारे हो।
सुख के साधन अनेक है लेकिन उसको सही और व्यवस्थित रूप से जीवन शौली को जीते हुए सतत उचाई पर बढ़ते रहना को जो प्राथमिकता देते है उनका ही सही रुप से बिकाश सही माना जाता है और वह समाज मे स्वयं को भी स्थापित कर पाता है। इस स्थापित बिचार के साथ जीते हुए परिवार को एक सुत्र मे बांधकर जीवन को समाज के लिए प्रेरक संदेश देते है। जिससे लोगो को आभार मिलता है तो कहते है प्यारे हो।
इस तरह के बिचार की स्थापना से जीवन को आगे ले जाता हुआ समाज एक शक्तिशाली व्यवस्था को जन्म देता है। जो इतिहासिक पृष्ठभुमी मे भी दर्ज होता हुआ स्वर्णिम संदेश देता है। जय हिन्द।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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